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________________ ४४६ विपाकश्रुते याहिइ । बोहिं बुझिहिइ, पवजा, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ५। णिक्खेवो ॥ सू० १४ ॥ ॥ दुहविवागस्स चउत्थं अज्झयणं समत्तं ॥४॥ टीका 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं सगडे दारए' ततः खलु स शकटो दारकः 'अण्णया कयाई सयमेव' अन्यदा कदाचित् स्वयमेव 'कूडग्गादत्तं' कूटग्राहताम्-कपटेन-माणिनां वशीकरणम् , 'उवसंपज्जित्ता णं' उपसंपद्य-संप्राप्य वशीकृत्य खलु 'विहरिस्सइ' विहरिष्यति । 'तए णं से सगडे दारए कूडग्गाहे भदिस्सइ' ततः खलु स शकटो दारकः कूटग्राहो भविष्यति । 'अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे' अधार्मिको यावत् दुष्प्रत्यानन्दा-दुष्परितोष्यः, पापकर्मभ्योऽपरिनिवृत्त इत्यर्थः। 'एयकम्मे एतत्कर्मा बञ्चनादिपापकर्मयुक्तः, 'सुबहुपावं' सुबहु पाएं 'समन्जिणित्ता' समय-उपार्जितं कृत्वा 'कालमासे कालं किच्चा इमीसे' काल 'तए णं से.' इत्यादि। 'तए ण' पश्चात् ‘से सगडे दारए' वह शकट दारक 'अण्णया कयाई किसी एक समय 'सयमेव कूडग्गादत्तं उवसंपजित्ता णं विरिस्सई कपट से अन्य प्राणीयों को अपने वश में करने की कला को प्राप्त करेगा । 'तए णं से सगडे दारए कूडग्गाहे भविस्सई' इसलिये वह शकट .दारक कूटग्राह इस नाम से जनता में प्रसिद्ध हो जायगा 'अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे' यह अधार्मिक एवं दुष्प्रत्यानंद होगा। इसे अपने पापकर्म से भी अरुचि नहीं होगी। यह सदा 'एयकम्मे' इसी ठगविद्या में निरन्तर क्रियाशील रहेगा, अतः 'सुबहु पावं समन्जिणित्ता 'तए णं से०' त्या 'तए णं पछी 'से सगडे दारए' ते २४८ २४ 'अण्णया कयाई' 5 मे समय ‘सयमेव कूडग्गाहत्तं उवसंपज्जित्ता णं विहरिस्सइ ' alon प्रासाने ४५थी पोताना १२ ४२पानी गाने प्रत 20 'तए णं से सगडे दारए कूडग्गाहे भविस्सइ २८मा स्थी ते शट २४ 'टयार्ड' मा नामया नतामा प्रसिद्ध यो 'अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे' ते भड! अभी भने દુપ્રત્યાનંદ થશે, તેને પિતાના પાપકર્મમાં કઈ વખત પણ અરૂચી થશે નહિ. તે मेशा 'एयकम्मे' विधामा निरंतर च्यिा रती रडशे तेथी ‘सुवहु पाव
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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