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________________ ४२६ - विपाकश्रुते मनोरथपूरणात्, 'चोच्छिन्नदोहला' व्यवच्छिन्नदोहदा निवृत्ताभिलापत्वात्, 'संपन्न दोहला' संपन्नदोहदा अभिलपितवस्तुभक्षणात्, 'तं गम्भं सुहं सुहेणं परिवहइ' तं गर्भ मुखसुखेन-अतिसुखेन परिवहतिधारयति ॥ सू० ८ ॥ ॥ मूलम् ॥ तए णं सा भद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइंणवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया, तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो जायमेत्तं चेव सगडस्स हेट्रओ ठावेति, ठावित्ता गिण्हावेंति, गिहावित्ता दोच्चंपि ठावेंति, ठावित्ता दोचंपि गिण्हावेंति, आणुपुव्वेणं सारक्वेति संगोवेति, संवड्ढेति । जहा उज्झियए, जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्ते चेव सगडस्स हेहा ठाविए, तम्हा णं होउ णं अम्हं एस दारए सगडे नामेणं, सेसं' जहा उज्झियए। सुभद्दे लवणससुद्दे कालगए, माया वि कालगया। से वि सयाओ गिहाओ निच्छुढे ॥ सू० ९॥ टीका . 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं सा भदा सत्यवाही नयण्णं मासाणं' तनः खलु सा भद्रा सार्थवाही नवानां मासानां ‘वहुपडिपुण्णाणं' वहुप्रतिपूर्णानां, सप्तम्यर्थे षष्ठी नवसु मासेषु बहुमतिपूर्णेषु-सर्वथा पूर्णेषु इत्यर्थः, 'दारगं' दारकं= होनेपर, और इच्छित वस्तु के खा लेने से प्रसन्न हुई वह 'तं गम' उस गर्भ को 'मुहं सुहेणं' सुखपूर्वक 'परिवहइ' धारण करने लगी ।सू०८॥ ___ 'तए णं सा०' इत्यादि ।। 'तए णं' एक दिन की बात है कि 'सा भद्दा सत्थवाही' उस भद्रा सेठानी ने 'अण्णया कयाई' किसी एक समय जब कि 'णवण्डं . दोहला संपन्नदोहला ' तमाम मनोरथ पू२५ थवाथा पातानी २२ अमितापाय ती नित्त यतi, छित वस्तु मापाथी प्रसन्न थयेटी त 'तं गम्भ' त गलने 'मुहं सुहेणं' सुमपूर्व परिवहई' पार ४२१t aroll (९० ८) 'तए णं सा०, vult. 'तए णं' मे हिवसनी पात छ-'सा भद्दा सत्यवाही' ते मद्रा हमे 'अण्णया कयाई' मे समय न्यारे 'णवण्इं मासाणं बहुपडि
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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