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________________ ४१४ विपाकश्रुते वृत्तिं कल्पयन्तः तेषां मांसानां विक्रयेण जीविकां कुर्वन्तः, 'विहरंति' विहरन्ति । 'अप्पणावियणं छणिए छागलिए बहुविहेहि अयमंसेहिं जाव महिसमंसेहि य तलियेहि य भन्जिएहि य' आत्मनापि च खलु स छन्निकश्छागलिको बहुविथैरजमांसैर्यावद् महिषमांसैश्च तलितैश्च भृष्टैश्व, 'सोल्लिएहि य' शूलपक्वैश्च सह 'सुरं च५' सुरां-मदिरां नानाविधां च, 'आसाएमाणे ४' आस्वादयन् विस्वादयन् परिसुञ्जानः परिभाजयंश्च 'विहरइ विहरति । सु० ६ ॥ में 'वित्ति कप्पेमाणा विहरंति' रखकर उन्हें वेचते और उस विक्री की आय से अपनी जीविका चलाते । 'अप्पणा वि य णं से छण्णिए छागलिए बहुविहेहिं अयमंसेहि जाव महिसमंसेहि' वह छनिक कसाई भी अजादिक से लेकर महिषतक के अनेक प्रकार के मांस के साथ जो 'तलिएहिं य भजिएहि य तला हुआ होता, भूजा हुआ होता एवं 'सोल्लेहिं य' शूल पर रखकर जो पकाया हुआ होता उस के साथ 'सुरं च४ आसाएमाणे४ विहरई' अनेक प्रकार की मदिरा का आसेवन आदि करता। भावार्थ-गौतमस्वामी का इस प्रकार प्रश्नसुनकर वीर प्रभु ने कहा-हे गौतम ! उस काल एवं उस समय में इस जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में स्थित इस भरत क्षेत्र में एक छगलपुर नाम का नगर था। उत्तका शाशक राजा सिंहगिरि था। यह बहुत ही अधिक पराक्रमशाली था । इसके शत्रु भी इसका नाम सुनकर भय से कंपित हो उठते थे। इसी नगर में एक धनिक बहुत परिवार वाला एवं. भासोने ४११-भावना २स्ता ५२ 'वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति' भान तने વેચતા હતા અને તે વેચાણની આવકમાંથી પિતાની આજીવિકા ચલાવતા હતા. 'अप्पणा वि य णं से छणिए छागलिए वह विहेहिं अयमंसेहिं जान महिसमंसे हि તે છનિક કસાઈ પણ બકરાદિકથી લઈને પાડાઓ સુધીના અનેક પ્રકારનાં માંસની सांधे २ 'तलिएहि य भनिएहिं य' तणे, सेवा 'सोल्लेहि य २३५२२।भान ५विता तसानी साथे 'सुरं च५ आसाएमाणे४ विहरइ . स नी मशिनुं પણું સેવન કરતો હતે. - ભાવાર્થ ગૌતમ સ્વામીના આ પ્રકારના પ્રશ્નને સાંભળીને વીર પ્રભુએ કહ્યું કે-હે ગૌતમ! તે કાલ અને તે સમયને વિષે આ જંબુદ્વીપ નામના દ્વીપમાં રહેલા આ ભરત ક્ષેત્રમાં એક છગલપુર નામનું નગર હતું, તેના રાજાનું નામ સિહગિર હતું તે બહુજ વધારે પરાક્રમ વળે હતો. તેના શત્રુઓ પણ તેનું નામ સાંભળીને સંયથી કંપી ઉઠતા હતા. તે નગરમાં એક ધનિક મોટા પરિવારવાળે અને મહા
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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