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________________ ४१२ विपाकश्रुते बहवे पुरिसा' अन्ये च तत्र बहवः पुरुषाः 'दिण्णभइभत्तवेयणा' दत्त भृति भक्तवेतनाः, इदमसकृद्वयाख्यातम् 'वहवे अये जावमहिसे य' बहूनजांश्च यावद् महिपांश्च 'सारक्खमाणो' संरक्षन्तः, 'संगोवेमाणा चिट्ठति' संगोपायन्तस्तिष्ठति। 'अण्णेय से बहवे पुरिसा' अन्ये च 'से' तस्यछनिकछागलिकस्य, वहवः पुरुषा 'अयाण य जाव जूहाणि य' अजानां यावद् महिषाणां यूथानि 'गिहंसि' गृहे 'संण्णिरुद्वाई' संनिरुद्धानि 'किचा' कृत्वा 'चिटुंति' तिष्ठन्ति । अण्णेय से वहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा बहवे अए य जाव महिसे य, अन्ये च तस्य बहवः पुरुषा दत्तभृत्तिभक्तवेतनाः वहून् अजान् यावद् महिषांश्च, 'जीवियाओ ववरो विति' जीविताद् व्यपरोपयन्ति जीवितात् पृथक्षुर्वन्ति मारयन्तीत्यर्थः। 'ववरोवित्ता' व्यपरोप्य मारयित्वा, 'मसाई' मांमानि 'कप्पणीकप्पियाई' पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा' इसके पास और दूसरे अनेक पुरुष काम करते थे। यह कसाई उन्हें उनकी नौकरी के उपलक्ष्य में भोजन एवं वेतन प्रदान करता था । 'वहवे अए य जाच महिसे य' इसमें कितनेक नौकर चाकर उन सब ही बकरों से लेकर महिषों तक के समस्त जानवरों की 'सारक्खमाणा संगोवेमाणा चिटंति' रक्षा करते थे, सार-संभाल करते थे । 'अण्णे य से वहवे पुरिसा' कितनेक उसके पुरुष-नौकर चाकर 'अयाण य जाव जूहाणि य' उन समस्त अजादिक जानवरों के समूहों को 'गिहंसि' उनके अपने२ स्थानों में 'मण्णिरुद्धाई किच्चा चिटुंति' बंद किये हुए रहते थे। 'अण्णे य से वहवे पुरिसा दिण्णभइसत्तवेयणा' एवं दूमरे कई नौकर चाकर कि जिन्हें इसकी ओर से भोजन एवं वेतन प्राप्त होता था वे 'वहवे अए य जाव महिसे य जीवियाओ ववरोविति' बहुत से उन अजादि से लेकर महिषों तक 'अण्णे य तत्व वहवे परिसा दिणभइत्तवेयणा' तना पासे भी अन माणुस કામ કરતા હતા, તે કપાઈ તે માણસેની નોકરીના પગારમાં તેમને ભજન અને पैसा मारतो तो. 'वहवे अए य नाव महिसे य ते नारामा ४ा ना२। ते तमाम गथी बछने पास सुधीन तमाम जननी 'मारक्षमाणा संगावेमाणा चिट्ठंति' २क्षा ४२ता. सा२ मा ४२ता ना, 'अण्णे य से वहवे पुरिसा' 2सा तना ना२-या४२ 'अयाण य जाव जूहाणि य त तमाम ५४२आदि नवना समूडाने 'गिहंसि' पात-पाताना स्थानामा 'सणिरुद्धाई किच्चा चिट्ठति ' म ने तो हता, 'अण्णे य से बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा' બીજા કેટલાક નોકરો કે જેમને કસાઈ તરફથી ભેજન અને પગાર મળને હતું તેવા 'वह वे अए य जाव महिसे य जीवियाओ ववरोविति' धया ५४२० माया
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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