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________________ ३८७ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ३, अभग्नसेनपूर्वभववर्णनम् __.. टीका। . . 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं से महब्बले राया कोडंबिय पुरिसे सदावेइ सदावित्ता' ततः खलु स महाबलो राजा कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति आवयति शब्दयित्वा आहूय ‘एवं' वक्ष्यमाणप्रकारेण, 'वयासी' अवादीत्-'गच्छह णं तुम्हे देवाणुप्पिया ! पुरिमतालस्स णयरस्स' गच्छत खलु यूयं हे देवासुप्रियाः ! पुरिमतालस्य नगरस्य 'दुवाराई द्वाराणि निर्गमप्रवेशमार्गान् ‘पिहेह' पिधत्त, 'अभग्गसेणं चोरसेणावई' अभग्नसेनं चोरसेनापति 'जीवग्गाहं गिलह' जीवग्राह गृहाण-जीवन्तं गृहाणेत्यर्थः। गिह्नित्ता' गृहीत्वा 'ममं उवणेह' मामुपनयत= मत्समीपमानयतेत्यर्थः । 'तए णं ते कौडेविय पुरिसा करयल जाव पडिसुणेति' ततः खलु ते कौटुम्बिकपुरुषाः करतलपरिगृहीतं यावत् प्रतिशृण्वन्ति= __तए णं से महब्बले०' इत्यादि । 'तए णं' अभग्नसेन एवं उसके साथियों के बेहोश होने के बाद से महब्बले राया' उस महाबल राजा ने कोडुबियपुरिसे सदावेई' कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया 'सदावित्ता' बुलाकर "एवं बयासी' फिर ऐसा कहा- 'गच्छह णं देवाणुप्पिया! हे देवानुप्रिय ! तुम जाओ, और 'पुरिमतालस्स णयरस्स दुवाराइं पिहेह' पुरिमताल नगर के समस्त दरवजो को बंद कर दो । तथा अभग्गसेणं चोरसैणावई' अभग्नसेन चोरसेनापति को 'जीवग्गाहं गिलह' जीवित ही पकडलो गि लेत्ता ममं उवणेह' पकडकर उसे मेरे पास ले आओ । 'तए णं' नृपका यह आदेश सुनने के पश्चात् 'ते कोडंबियपुरिसा करयल० जाव पडिसुणेति' उन कौटुम्बिक पुरुषों ने राजा के प्रदत्त आदेश को बडी भक्ति के साथ 'तए णं से महब्बले ' त्यादि. . 'तए णं' मनसेन तथा तेना साथीहारे। मेमान थप गया पछी से महब्वले राया' ते महार रातो 'कोडुवियपुरिसे सदावेइ' मि पुरुषाने मोसाव्या 'सदावित्ता'मातापाने एवं वयासी' पछी २मा प्रमाणे ह्यु 'गच्छह णं देवाणुप्पिया !' वानुप्रिय! तमे यो 'पुरिमतालस्स णयरस्स दुवाराई पिहेह.' पुरिभतार नगरना तमाम ४२वाजमाने मध 3री हो, तथा 'अभग्गसेणं चोरसेणावई' समानसेन या-सेनापतित 'जीवग्गाहं गिलह ' तो ४ ५४ी सीमा. 'गिह्नित्ता ममं उवणेह' ५४ीन तन भारी पासेस मावा. 'तए णं' सतना मा प्रा२ना हु भने सामनीने पछी ते कोडुबियपुरिसा करयल० जाव पडिसुणेति' टुमि पुरुषाने २०० माघेला भने भान
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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