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________________ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु. १, अ. ३, अभग्नसेन पूर्वभववर्णनम् ॥ मूलम् ॥ तए णं से णिण्णए अंडयवाणियए एयकम्मे ४ सुबहु पावं समज्जिणित्ता एवं वाससहस्सं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा तच्चा पुढवीए उक्कोसं सत्तसागरोवमडिइएस रइएस रइयत्ताए उववण्णे । से णं ताओ अनंतरं उबfeat sea सालाडवी चोरपल्लीए विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसि भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे ॥ सू० ८ ॥ टीका 'त णं' इत्यादि । 'तर णं से णिण्णए अण्डवाणियए' ततः खलु स निर्नयोऽण्डकवाणिजकः, 'एयकम्मे' एतत्कर्मा=अण्डकसंग्रहविक्रय कर्मकरणशीलः, अत्र - 'एयपहाणे, एयत्रिज्जे, एयसमायारे' इति पदत्रयं संग्राह्यम् एतत्मधानः ' = अण्डकसंग्रहविक्रयतत्परः, एतद्विद्य : = अण्डकसंग्रहविक्रयाचरणनिष्टः, एतत्समाचारः=अण्डकक्रयविक्रयसमाचरणतत्परः, 'सुबहु पावं, घोरं पापकर्म 'समज्जि - णित्ता' समय उपार्जितं कृत्वा 'एगं वाससहस्स' एकं वर्षसहस्रं 'परमाउं' परमायुष्कं = उत्कृष्टमायुः 'पालइत्ता' पालयित्वा 'कालमासे कालं किच्चा' 'तर णं से गिण्णए०' इत्यादि । 'तए णं से णिण्णए अंडयवाणियए' इस प्रकार उस निर्नय अंडव्यापारी ने कि जिसका 'एयकम्मे४' अंडों का व्यापार करना आदि और स्वयं भी उनका खाने पीने में उपयोग करना यही एक जीवनभर तक कर्म रहा 'सुबहु पात्रं समज्जिणित्ता' अनेक प्रकार के पापकर्मों का उपार्जन करके 'एगं वाससहस्स' एक हजार वर्ष की 'परमाउं पालइत्ता' उत्कृष्ट अपनी आयु समाप्त कर वह जब 'कालमासे कालं किया' कालमास में मरा तब ' तच्चाए पुढवीए' तृतीय पृथिवी के 'उक्कोसं ' ३२.३ 6 तए णं से णिण्णए ' त्याहि. तए णं से णिण्णए अंडयवाणियए' मा प्रमाणे ते निर्नय डाना वेपारी 'एयकम्मे४ ' डा। वेपार वा वगेरे भने पोते यशु भावा-पीवामां . तेनो उपयोग १२वे। गोन मे वनभर सुधीर्म र ' सुबहु पात्रं समज्जि - णित्ता' भने प्रानां पापभेना संयय - भेजवीने ' एगं वाससहस्सं ' हुन्नर वर्षानी 'परमाउं पालइत्ता ' उत्सृष्ट पोतानी आयुष्य यूरी उरीने ते न्यारे कालमासे कालं किच्चा ' सभासभां भर पाभ्येो त्यारे ' तच्चाए पुढवीए' 6
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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