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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० २ उज्झितकवर्णनम् २७५ ॥ सूलम् ॥ तए णं से उज्झियए दारए अण्णया कयाइं कामज्झयाए गणियाए अंतरं लभेइ, लभित्ता कामज्झयाए गणियाए गिहं रहस्तियं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता कामज्झयाए सद्धि उरालाइं जाव विहरइ। इमं च गं मित्ते राया पहाए जाव कयवलिकम्मे कयकोउयसंगलपायच्छिन्ते सवालंकारविभूलिए मणुस्सवागुराए परिरिखते जेणेव कासज्झयाए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तत्थ णं उज्झियं दारयं कामज्झयाए गणियाए सद्धिं उरालाई जाव विहरमाणं पासइ, • पालित्ता आसुरुत्ते ४ तिवलिं भिउडि णिलाडे साहटु उज्झियं दारयं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावित्ता अद्विमुद्विजाणुकोप्परप्पहारेणं संभग्गमहियगतं कारेइ, कारिता अवउडगवंधणं कारेइ, कारिता एएणं विहाणेणं वज्झं आणवेइ । ___ एवं खलु गोयसा! उज्झियए दारए पुरा पोराणाणं जाव पञ्चणुभवमाणे विहरइ ॥ सू० २० ॥ टीका 'तए णं इत्यादि । 'तए णं से उझियए दारए अण्णया कयाई कामज्झयाए गणियाए' ततः खलु स उज्झितको दारकः, अन्यदा कदाचित मकान के ही आसपास फिरता रहा। दूसरी जगह कहीं पर भी नहीं गया ॥ ० १९ ॥ __ 'तए पं से उझियए' इत्यादि । 'तए पं. इसके अनन्तर ‘से उज्झियए दारए' उस उज्जित મકાનની આસપાસ ફરતે રહ્યો અને બીજી કઈ જગ્યાએ ગયે નહિ ( ૧૯) 'तए णं से उझियए या 'तए : त ५४ा से उज्झियए दारए' Sast : 'अग्णया - - -
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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