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________________ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु० १, अ०:२, उज्झितकपूर्वभवगोत्रासवर्णनम् २७१. कदाचित् श्रियो देव्याः श्रीदेवीनाम्न्या राजपत्न्याः 'जोणीमूले' योनिशूलं- योनिशूलनामको रोगः, 'पाउन्यूए' प्रादुर्भूतः संजातः 'यांवि होत्था' चाप्य भवत् , 'णो सचाएइ मित्ते राया सिरीए देवीए सद्धिं उरालाइ माणुस्सगाई भोगभोगाई झुंजमाणे विहरई' नो शक्नोति मित्रो राजा श्रीदेव्या सार्धमुदारान् मानुष्यकान् भोगभोगान् भुञ्जानो विहर्तम् । 'तए णं से मित्ते राया' ततः खलु स मित्रो राजा 'अण्णया कयाई अन्यदा कदाचित् कस्मिश्विदन्यस्मिन् समये 'उज्झिययं दारयं' उज्झितकं दारकं 'कामज्झयाएं गणियाए गिहाओ' कामध्वजाया गणिकाया गृहात् 'णिच्छुभावेइ' निक्षेपयति बहिनिः सारयति, "णिच्छुभाविता' निक्षेप्य बहिनि सार्य 'कामज्झयं गणियं कामध्वजां गणिकाम् 'अभितरयं' आभ्यन्तरिक भवनाभ्यन्तरवर्तिनी कृत्वा, 'त्वया गृहाद् बहिर्नगन्तव्य'-मिति विवशां कृत्वेत्यर्थः 'ठवेई' स्थापयति, 'ठवित्ता' स्थाप "तए णं तस्स मित्तस्स' इत्यादि । 'तए णं तस्स मित्तस्स रणो' तदनन्तर उस मित्र राजा की 'सिरीए देवीए' महारानी श्रीदेवी को 'अण्णया कयाई' किसी एक समय 'जोणीमूले पाउब्लूए यावि होत्था' योनि में शूल उत्पन्न हुआ। इससे वह 'णो संचाएइ मित्ते राया सिरीए देवीए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई मुंजमाणे विहरित्तए' मित्रराजा श्री-देवी के साथ उदार मनुष्य-सम्बन्धी कामभोगों को भोगने के लिये समर्थ नहीं हो सका। 'तए णं' अतः ‘से मित्ते राया' उस मित्रराजाने 'अण्णया कयाई' किसी एक समय 'उज्झिययं दारयं कामज्झयाए गणियाए गिहाओ णिच्छुभावेई' उज्झित दारक को कामध्वजा वेश्या के घर से बाहर निकलवा दिया। ‘णिच्छुभाविता कामज्झयं. गणियं अभितरयं ठवेइ' और निकलवा कर "तए णं तस्स मित्तस्स. त्या 'तए णं तस्स मित्तस्स रणो' त्या२ पछी ते मित्र रानी 'सिरीए देवीए' महाराणी श्रीवान अपणया कयाई 30 मे समय 'जोणीमूले पाउन्भूए. यावि होत्था' योनिमा शुस Surन थयु, मे १२२.थी ते 'णो संचाएइ. मित्ते राया सिरीए देवीए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए'. મિત્ર રાજા શ્રી દેવીની સાથે ઉદાર, મનુષ્યસમ્બન્ધી કામને ભોગવવા માટે समर्थ था ये नडि 'तए णं' ते थी 'से मिसे राया' ते मित्र 'अण्णया कयाई' 15 मे समय 'उज्झिययं दारयं कामझयाए गणियाए गिहाओ.. णिच्छुभावेइ. Gand E२४२ मत वेश्याना घरथी महा२ ४ढी yst०2t: - 'णिच्छुभाविता कामज्झयं. गणियं अभितरयं ठवेइ' भने ४ढावीन. त.
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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