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________________ २६८ . . . . . . . . . . . . . . ... विपाकश्रुते तथा, निरङ्कुश इत्यर्थः; 'अणिवारए अनिवारकः-नास्ति निवारको मैवं कार्षी:रित्येवं निषेधको यस्य स तथा, प्रतिषेधकरहित इत्यर्थः; सच्छंदमई' स्वच्छदमतिः 'सइरप्पयारे' स्वैरप्रचार: स्वच्छन्दचारी, 'मज्जप्पसंगी' मद्यप्रसङ्गीमदिराऽऽसक्तः, 'चोरजूयवेसदारप्पसंगी' चौरचूतवेश्यादारप्रसङ्गी, 'माए यावि होत्या जातश्चाप्यभवत् । 'तए णं से उझियए दारगे ततः खलु स उझितको दारकः 'अण्णया कयाई' अन्यदा कदाचित्-कस्मिंश्चिदन्यस्मिन् समये 'कामझयाए' कामवजया-कामध्वजानाम्न्या 'गणियाए' गणिकया-वेश्यया, 'सद्धि' सार्थ 'संपलग्गे' संप्रलमा समिलितो 'जाए याचि होत्या' जातश्चाप्यभवत् , 'कामझयाए गणियाए सद्धिं जरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरई' कामध्वजया गणिकया सार्धमुदारान् मानुष्यकान् भोगभोगान् भुञ्जानो विहरति । मृ० १८ ॥ करने वाला हो गया। 'अणिवारए' 'अरे भाई! ऐसा मत कर' ऐसा कहने वाला इसे कोई नहीं रहा। इससे यह 'सच्छंदमई' स्वच्छंदमति और 'सइरप्पयारे' स्वेच्छानुसार चलनेफिरने वाला हो गया। 'मज्जप्पसंगी' मद्यपान एवं 'चोरजयसदारप्पसंगी' चोरी, जूआ, वेश्या और परस्त्रीसेवन करने में भी खूब चतुर हो गया। संसार में जितनी भी बुरी आदतें और बुरे काम होते हैं उन सब का यह उस समय प्रधान सेवक माना जाने लगा। 'तए णं से उझियए दारए अण्णया कयाई कामज्झयाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे जाए यावि होत्या' किसी एक समय की बात है कि उज्झित दारक का मिलाप-वहीं की एक प्रसिद्ध गणिका कि जिसका नाम कामध्वजा था, उसके साथ हो गया। 'कामज्झयाए गणियाए सद्धिं उरालाई भ२७ प्रभा प्रवृत्ति ४२५८ वाजेगयो. 'अणिवारएभरे मा ! मा प्रभार तमे न ।' आदी सूचना ? भाज्ञा श नार तेने रघुना 'सच्छदमई' सहमति यजयो. 'सइरप्पयारे' स्वानुसार वर्तन श्वापाको ५६ गयो, 'मज्जप्पसंगी मद्यपान, भने 'चोरञयवेसदारप्पसंगी' यारी, लुगार, वेश्या અને પરસ્ત્રી સેવન કરવામાં પણ ખૂબ હોશિયાર બની ગયે, સંસારમાં જેટલી–જેટલી ખરાબ ટેવ અને ભુંડા કામ હોય છે, તે તમામને તે દારક મુખ્ય સેવક ગણાતો હતો, 'तए णं से उझियए दारए अण्णया कयाइं कामज्झयाए गणियाए सद्धि संपलब्गे जाए यावि होत्या ३ ४ अभयनी बात 3 efarst Ext મેલાપ ત્યાંની એક મહાન પ્રસિદ્ધ ગતિ ગણિકા કે જેનું નામ કામધ્વજા હતું તેની बाधे ५५ गये. 'कामझयाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाइ भोगभोगाई
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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