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________________ वि. टीका, श्रु० १, अ० १, एकादिराष्ट्रकूटस्य वैद्यादिकृतोपचारः .. १४१ स्वकेभ्यः स्वकेभ्यः, 'गिहेहितो' गृहेभ्यः 'पिडिनिक्खमंति' प्रतिनिष्कामन्ति= निर्गच्छन्ति, 'पडिनिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य, 'विजयवद्धमाणस्स खेड़स्स मज्झंमज्झेणं' विजयवर्धमानस्य खेटस्य मध्यमध्येन 'जेणेव' यत्रैव 'एक्काइरहकूडरस गिह' एकादिनामकस्य राष्ट्रकूटस्य गृहं 'तेणेव उवागच्छंति' तत्रैवोपागच्छन्ति, 'उवागच्छित्ता' उपागत्य एक्काइसरीरयं' एकादिशरीरकम् एकादिनामकस्य राष्ट्रकूटस्य शरीरं 'परामुसंति' परामशन्ति-स्पृशन्ति । 'तेसिं रोगाणं' तेषां रोगाणां 'नियाणं' निदानम् उत्पत्तिकारणं 'पुच्छंति' पृच्छन्ति । 'एक्काइरहकूडस्स' एकादिराष्ट्रकूटस्य 'बहूहि' बहुभिः बहुविधैः 'अब्भंगेहि य' अभ्यङ्गैश्च तैलमर्दनैश्च 'उबट्टणाहि य' उद्वर्तनैश्चमलापकर्षकद्रव्यसंयोगविशेषेण शरीरोपमर्दनैश्च, 'सिणेहपाणेहि य' स्नेहपानैश्च औषधपरिपक्वघृतादिपानैश्च, 'वमणेहि से 'पडिनिक्खमंति' निकले, और 'पडिनिक्खमित्ता' निकल कर विजयवद्धमाणस्स खेडस्स' विजयवर्धमानखेट के 'मझमज्झेणं' बीचों बीच होकर 'जेणेव एक्काइरकूडस्त गिहे' जहां एकादि राष्ट्रकूट राजा का गृह था 'तेणेव उवागच्छंति' वहां पर पहुँचे, और "उवागच्छित्ता' पहुँच कर उन्होंने 'एक्काइसरीरयं' एकादि नृपति के शरीर का 'परामुसंति' स्पर्श किया। पश्चात् 'तेसिं रोगाणं' उन रोगों का नियाणं' निदान- 'उत्पत्ति का मूल कारण क्या है ?" यह 'पुच्छइ' पूछा। पूछने के बाद उन्होंने 'एक्काइरष्टकडस्स' उस एकादि राष्ट्रकूट का 'वहूहि अभंगेहि य ' बहुत प्रकार के अभ्यंगे-तैलों की मालिश के द्वारा 'उबट्टणाहि य, उद्वर्तना-मल को शरीर से बाहर निकालने वाली ओषधियों के संयोगविशेष से शारीरिक मालिश 'सएहितो २ गिहेहितो' पातपाताना घराथी 'पडि निक्खमंति' नया, मने 'पडिनिक्वमित्ता' नाम 'विजयवद्धमाणस्स खेडस्स' वियवद्ध भान मेडनi 'मज्झमज्झेण' पश्यावन्य थाने 'जेणेव एक्काइरट्ठकूडस्स गिहे 'न्यां मेula २।टयूट २ निवास्थान. तु तेणेव उवागच्छंति' त्या 'माया, मने “उवागच्छित्ता' मावाने 'एक्काइसरीरयं' तेभरे माह राना शरीरना 'परामुसंति' २५ ध्ये. पछी 'तेसिं रोगाणं' ते शेगानु ‘नियाणं' निहानउत्पत्तिर्नु भूत २शुछ ? थे 'पुच्छीत' ५७यु, ५७या पछी तेभ 'एक्काइरट्ठकूडस्स' ते मे राष्ट्र यूटना 'बहूंहिं अब्भंगेहि य' gire प्रा२ना न्मल्यो -साना मालिश द्वारा, 'उबट्टणाहि य' पीडामा-भाने शरीरमांथी. -18२ नारी भोषधियानां सयाविशेषयी शा२४ भालिस द्वारा, 'सिणेहपाणेहि
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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