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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० १, एकादिराष्ट्रकूटवर्णनम्. १२३. 'सामिचं' स्वामित्वं-नायकत्वं 'भट्टित्त' भर्तृत्वम्-पोषकत्वम् , 'महत्तरगत्त' महत्तरकत्वम् उत्तमत्वम् 'आणाईसरसेणावच्चं' आज्ञेश्वरसेनापत्यम्-आमायाम्= आज्ञापदाने ईश्वरः समर्थों यः सेनापतिस्तस्य भावस्तत्त्वं 'कारेमाणे' कारयन् =संपादयन् नियोगिकैरिति भावः, 'पालेमाणे पालयन् स्वयमेव रक्षन् 'विहरई' विहरति ॥ मू० १४ ॥ जनों को भी उनका मुखिया बनाये हुए था, 'सामित्तं' स्वयं भी उनका नायक था और अपने नियोगिजनों को भी उनके नायक बना रक्खे थे, 'भट्टित्तं ' स्वयं भी उनका पोषक था और अपने नियोगिजनों को भी उनके पोषक किये हुए था, ' महत्तरगत्तं ' स्वयं भी यह उन गावों में महत्तर-सर्वोत्तम-रूप से विख्यात था, तथा अपने नियोगिजनों को भी यह उनमें महत्तर रूप से प्रसिद्ध किये था। ' आणाईसरसेणावचं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ' इसकी और इसके नियोगिजनों की आज्ञा उन गावों में प्रधानरूप से चलती थी। भावार्थ-अब श्रीश्रमण भगवान महावीर मृगापुत्र के पूर्वभव का वर्णन करते हैं कि- हे गौतम ! इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में उस काल और उस समय जन और धन आदि से सर्वप्रकार से परिपूर्ण शतद्वार नामका एक सुन्दर नगर था। यह अपने . वैभव आदिसे देवलोक की तुलना करता था। जनता इसकी निर्भय પિતે સૌને નાયક હતું, અને તેણે પોતાનાં વિશ્વાસુ માણસોને પણ નાયક તરીકે રાખેલાં હતાં, 'भट्टित्त' पोते तेरा घोष तो तभ० तेथे पोताना विश्वासु भासाने पा! तेनापौष मनाव्या हतi. ' महत्तरगत्तं' पाते ते ॥भामा सत्तिभ३५था प्रज्यात तो. तथा तेणे पोताना विश्वासु भासाने ५५ सर्वोत्तभ३५थी प्रसिद्ध ४ ता. 'आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ' मने तेभनी तथा तेन विश्वासु भाणुसની આજ્ઞા તે ગામમાં પ્રધાનપણે ચાલતી હતી. ભાવાર્થ-હવે શ્રીશ્રમણ ભગવાન મહાવીર મૃગાપુત્રના પૂર્વભવનું વર્ણન કરે છે કે, હે ગૌતમ! આ જમ્બુદ્વીપના ભરત ક્ષેત્રમાં તે કાળ અને તે સમયને વિષે જન અને ધન આદિ સર્વપ્રકારથી પરિપૂર્ણ શતદ્વાર નામનું એક સુર નગર હતું. તે પિતાના લિવ આદિ વડે દેવકની તુલના કરતું હતું. ત્યાંના માણસો ભયરહિતપણે રહેતાં હતાં. દરેક પ્રકારે પ્રજામાં તેનું એકછત્ર રાજ્ય હતું.
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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