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________________ ९८ . . ......... विपकने मसाइमस्स गंधेणं अभिभूए समाणे तंसि विपुलंसि असणपाणखाइमसाइमंसि मुच्छिए, तं विउलं असणं४ आसएण आहारेइ, आहारिता खिप्पामेव विद्धंसेइ, विद्धंसित्ता तओ पच्छा पूयत्ताए य सोणियत्ताए य परिणामेइ । तंपि य णं पूयं च सोणियं च आहारेइ ॥ सू० ११ ॥ टीका 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं सा मियादेवी तं कसगडियं'। ततः खलु सा मृगादेवी तां काष्ठशकटिकाम् 'अणुकड्ढमाणी२' अनुकर्षन्ती२ 'जेणेव भूमिघरे तेणेव उवागच्छइ' यत्रैव भूमिगृहं तत्रैवोपाच्छति, ‘उवागच्छित्ता' उपागत्य 'चउप्पुडेणं वत्थेणं' चतुष्पुटेन वस्त्रेण 'मुहं वंधमाणी' मुखं घ्राणं बनती-आच्छादयन्ती 'भगवं गोयमं एवं क्यासी' भगवन्तं गौतमम् एवमवादीत् 'तुम्भे विणं भंते !' यूयमपि खलु हे भदन्त ! 'मुहपोत्तियाए मुहं बंधेह'. 'तए थे' इत्यादि। 'तए णं' इसके बाद 'सा मियादेवी' वह मृगादेवी 'तं कट्ठसगडियं'' उस गाडी को 'अणुकड्हमाणी२' खेंचती२ 'जेणेव भूमिघरे' जहां पर भोयरा था 'तेणेव उवागच्छइ' वहां पर पहुँची, और 'उवागच्छित्ता' पहुँचते ही उसने 'चउप्पुडेणं वत्थेणं' चार पुट किये हुए वस्त्र से 'मुहं बंधेइ' सुख को, अर्थात् नाक को ढक लिया, और 'मुहं बंधमाणी' सुख को अर्थात् नासिका को ढंकती हुई 'भगवं गोयमं एवं वयासी' भगवान गौतम से कहने लगी कि-'भंते !' हे भदन्त ! 'तुब्भे वि णं मुहपोत्तियाए मुहं बंधेह' आप भी अपनी नाकको मुखप्रोछनिका से, अर्थात्-धूलि 'तए णं' त्या 'तए णं' त्यार पछी 'सा मियादेवी' ते भृगावा 'तं कट्ठसगडियं' ते पीने 'अणुकड्हमाणी२' यती यती ‘जेणेव भूमिघरे' ज्यां माग माय तु 'तेणेव उवागच्छइ' त्या भाग पडया, भने 'उवागच्छित्ता' पडियाने तो 'चउप्पुढेणं वत्थेणं! साडीवाणे परथी .' मुहं बंधेइ' भुमने, अर्थात् नाने diseli, भने ' मुहं वंधमाणी' भुमने-सिने डीन भगवं गोयम एवं वयासी' भगवान गौतमने ४३ - alon 3-'भत। ort ! 'तुभे. वि णं मुहपोत्तियाए मुहं बंधेह ! माप य] • मायना नाने
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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