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________________ R विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अं० १, मृगादेवी गौतमस्वामि-संवादः . ९५. 'इह चे चिट्टह' इहैव तिष्ठत । 'जा णं' यावत् खलु-यावति काले खलु 'अहं तुम्भं मियापुत्तं दारग' अहं युष्मभ्यं मृगापुत्रं दारकस् 'उवदंसेमि' उपदर्शयामि, 'त्ति कटु' इति कृत्वा इत्युक्त्वा 'जेणेव भत्तपाणघरे तेणेव उवागच्छइ यत्रैव भक्तपानगृहं तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता' उपागत्य, 'वत्थपरियट्टयं' वनपरिवर्त-वस्त्रस्य परिवर्त परिवर्तनम् - साधारणवस्त्रपरिधानं 'करेइ' करोति, 'करित्ता' कृत्वा 'कट्ठसगडियं' काष्ठशकटिकां काष्ठमयं लघुशकटंगाडी'-इति प्रसिद्धं 'गिण्हइ' गृह्णाति 'गिण्हित्ता' गृहीत्वा 'विउलस्स असणपाणखाइमसाइमस्स' विपुलस्याऽशनपानखाघस्वाधस्य 'भरेइ' भरति-पूस्थति, अत्र कर्मणः शेषत्वविवक्षायां षष्ठी, 'भरित्ता' भृत्वा 'तं कसगडियं' तां काष्ठशकटिकास् 'अणुकड्ढमाणी२' अनुपन्ती२ 'जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उनागच्छइ' यत्रैव भगवान् गौतमस्तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता भगवं गोयम 'भंते ! तुम्थे णं इह चेव चिट्ठह' हे भगवन् ! आप कुछ समय तक यहीं पर ठहरिये । 'जा णं अहं तुब्भं मियापुत्तं दारगं उवदंसेमि' मैं जब तक आपके लिये अगापुत्र को दिखलाती हूं,-'त्तिकट्टु' ऐसा कह कर "जेणेव भत्तपाणघरे तेणेव उवागच्छई' वह जहां भक्तपानगृह था वहां पर गई, और 'उवागच्छित्ता' जाकर 'वत्थपरियट्टयं करेई वस्त्रपरिवर्तन करने लगी 'वत्थपरियट्टयं करित्ता' वस्त्रपरिवर्तन कर लेने के बाद 'कट्ठसगडियं गिण्हई' उसने एक छोटी सी लकडी की बनी हुई गाडी ली, और उसमें उसने 'विउलस्स असणपाणखाइमसाइमस्स भरेइ' विपुल अशन, पान, खाच और स्वायके भेद से चारों प्रकार के आहारपानी भरे, भर कर 'तं कसडियं अणुकडढमाणी२' वह उसे रखेंचती हुई 'जेणेव भगवं गोयमें जहां गौतमस्वामी खडे थे 'तेणेव उवागच्छई' 'भंते ! तुम्भे णं इह चेव चिट्ठह' 3 सपान ! २५ थे। समय से 'जा णं अहं तुभ मियापुत्तं दारगं उदंसेमि' दाम हु आपने भृात्र मता, 'त्ति कटु' मे प्रमाणे डीने 'जेणेव भत्तपाणघरे तेणेव उवागच्छई' ते न्यानोरन] तु त्यां 19, भने 'उवागच्छित्ता' । 'वत्थपरियट्टयं करेइ पपरिवर्तन ४२वा , 'वत्थपरियट्टयं करित्ता' 4 पाव्य! पछी 'कसंगडियं गिव्हई तो मे नानी : ४ानी मनायी on सीधी मने तेस तेरी 'विउलस्त असणपाणखाइमसाइमस्स मरेइ' सादीशते अशन, पान, माघ आने स्पायना नेत्या याश्य मार-पा० ते लादीन 'तं कसमडियं अणुकड्ढमाणी.ते तन मेंयती यही 'जेणेव भगवं गोवमे' या गीतम स्वामी
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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