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________________ % 3D विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० १, मृगापुत्रं द्रष्टुं गौतमस्य गमनम् ८७ उवागच्छइ यत्रैव मृगाग्रामो नगरं तत्रैवोपागच्छति, ‘उवागच्छित्ता मियागामं णय' उपागत्य मृगाग्राम नगरं 'मज्झं मझेणं अणुपविसई' मध्यमध्येन अनुप्रविशति, 'अणुपविसित्ता जेणेब मियादेवीए गिहे' अनुमविश्य यत्रैव मृगादेव्या गृहं 'तेणेव उवागच्छइ' तत्रैवोपागच्छति ॥ सू० ८ ॥ पूर्वक गमन करते हुए 'जेणेव मियागामे णयरे तेणेव उवागच्छइ' जहां गाग्राम-नामका नगर था वहां पर पहुंचे, 'उबागच्छित्ता मियागामं णयरं मज्झंमज्झेण अणुपविसइ पहुँचते ही वे उस नगर में ठीक उसके बीचोबीच मार्ग से प्रविष्ट हुए, 'अणुपविसित्ता जेणेव मियादेवीए गिहे तेणेव उवागच्छई' प्रविष्ट होकर जहां मृगादेवी का महल था वहां पहुँचे । भावार्थ-भगवान के बडे शिष्य गौतम स्वामी, जो कि सात हाथ की अवगाहनावाले और समचतुरस्त्रसंस्थान आदि विशेषणों से युक्त थे, उन्हों ने उस जन्मांध व्यक्ति को देखकर बडे विनय और नव्रता के साथ दोनों हाथ जोडकर प्रभु से प्रश्न किया कि-हे भगवन् ! जिस प्रकार यह मनुष्य जन्मांध और जन्मांधरूप है, क्या इस प्रकार का और भी कोई व्यक्ति है। प्रभु ने उत्तर देते हुए कहा कि-हे गौतम ! हां है, और वह इसी. सृगाग्राम नगर के राजा विजय और रानी नृगादेवी का पुत्र है, उसके न कोई अंग हैं और न उपांग, सिर्फ इनकी उसमें आकृतिमात्र ही दृष्टिगोचर होती है। रानी उस अपने पुत्र को महल के भोयरे 'जेणेव मियागामे णयरे तेणेव उवागच्छइ' ज्यां भृगायाभ' नामर्नु नग२ हेतु त्यां पडे-या. 'उवागच्छित्ता मियागामं णयरं मज्झमज्झेणं अणुपविसइ' पयtion ०३२।१२ नगरना पन्यता माथी प्रवेश ये. 'अणुपविसित्ता जेणेव मियादेवीए गिहे तेणेव उवागच्छइ' प्रवेश परीने ज्यां भृवाना भडेस तो त्यां गया. . ભાવાર્થ–ભગવાનના મોટા શિષ્ય શ્રીગૌતમસ્વામી કે જેઓ સાત હાથની અવગાહનાવાળા અને સમાચમુરસસંસ્થાન આદિ વિશેષણોથી યુકત હતા, તેમણે એ જન્માંધ વ્યક્તિને જોઈને બહુજ વિનય અને નમ્રતા સાથે બે હાથ જોડીને પ્રભુને પ્રશ્ન કર્યો કે હે ભગવાન! જે પ્રમાણે આ માણસ જન્માંધ અને જન્માંધરૂપ છે, તેવી રીતે બીજો કોઈ માણસ છે. પ્રભુએ ઉત્તર આપતાં કહ્યું કે હે ગૌતમ! હા છે, અને તે આ મૃગગ્રામ નગરના રાજા વિજય અને રાણી મૃગાદેવીને પુત્ર છે, તેને કોઈ અંગ નથી તેમજ કેઈ ઉપાંગ પણ નથી, કેવળ તેની આકૃતિમાત્ર તેનામાં છે. રાણ
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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