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________________ १२४ उत्तराध्ययन सूत्रे अन्यच्च मूलम् -- पेसिया पलिंउंचंति, ते पेरियंति समतओ । रायविट्ठि व मन्नता, केरिति भिउंडिं मुंहे ||१३|| छाया - प्रेषिता अपह्नुवते, ते परियन्ति समन्ततः । राजवेष्टिमिव मन्यमानाः कुर्वन्ति भृकुटिं मुखे ॥ १३ ॥ टीका--' पेसिया' इत्यादि । 3 कुशिष्या गुरुणा कुत्रचिद् गृहस्थगृहे आहाराद्यर्थं प्रेषिताः सन्तः अपहुवते =कदा भवद्भिरुक्तं तद्गृहात् आहारमानय इति वदन्ति । अथवा - मधुराहारादिकं गोपयन्ति । यद्वा-उक्तं कार्यं न कुर्वन्ति । किंवा - अकृतमपि कृतं वदन्ति । अथवा गई होगी । अथवा ऐसा भी कह बैठता है कि - (अन्नोत्थ वच्चउ-अत्र अन्यः व्रजतु ) आप इस कार्य में किसी दूसरे साधुको भेज दीजिये। मैं ही एक साधु तो हूं नहीं और भी तो साधु है ॥ १२ ॥ फिर वे कुशिष्य क्या कहते हैं सो कहते हैं - 'पेसिया' इत्यादि । अन्वयार्थ – (पेसिया - प्रेषिताः) वे कुशिष्य जब उन्हें गुरु महाराज किसी गृहस्थके यहां आहारादिक सामग्री लानेके लिये भेज देते हैं तब (पलिउंचति - अपहूणुवते ) " आपने कब कहा था कि अमुक के यहांसे आहार ले आओ" ऐसा कह देते हैं । अर्थात् गुरु महाराज जिस घरसे आहार लेनेके लिये कह देते हैं वे उस घर से आहार नहीं लाते हैं और इस बातको छिपानेके लिये उल्टे गुरु महाराज से कह उठते हैं कि "आपने उस घरसे आहार लानेके लिये कब कहा था " । अथवा मधुर आहार आदिको छुपा लेते है- गुरु महाराजको नहीं दिखलाते हैं । अथवा व्रजतु साथ आ ार्य भाटे मील अध નથી ખીજા પણ ઘણા સાધુ છે. । ૧૨ । दूरीथी पशु शिष्य साधु शुं हे छे ते तावे छे -"पेसिया" इत्याहि ! " हे छे, अन्नोत्थवच्च - अत्र अन्य સાધુને મોકલાવે. હું એક સાધુ જ मन्वयार्थ--पेसिया-प्रेषिया या शिष्यने न्यारे गुरुमहारा अर्ध गृहस्थने त्यां आहार आदि सामग्री सेवा भाउले ते त्यारे पलिङ'–चंति-अपह्नु ववे “ माये हुयारे ४ तुं समुङने त्याथी आहार सई सावा" मे કહી દે છે અર્થાત્-ગુરુ મહારાજ જે ઘેરથી આહાર લાવવાનુ કહે છે તે ઘેરથી એ આહાર લાવતા નથી અને એ વાતને છુપાવવા માટે ઉલટુ' ગુરુમહારાજને છે કે, “ આપે એ ઘેરથી આહાર લાવવા માટે કયારે કહ્યું હતું ” મધુર આહાર આદિને છુપાવી લે છે. ગુરુમહારાજને બતાવતા નથી.
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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