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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ अग्निकायजीवनिरूपणम् ८५७ अग्निकायजीवेषु ये तु सूक्ष्मास्ते एकविधाः अनानात्वा व्याख्याताः अविद्यमान नानात्वम्-अनेकत्वं येपां ते-अनानात्वाः, भेदरहिता इत्यर्थः, यस्मादनानात्वाः,अत एकविधा इति भावः । अतः परं गाथाद्वयं प्राग् व्याख्यातम्॥१११-११२-११३॥ तेजसाम्-अग्निकायजीवानाम् , उत्कर्षेण त्रीन अहोरात्रान् आयुः स्थितिः भवस्थितिः, व्याख्याताः = तीर्थङ्करादिभिः कथिता । जघन्यिका-जघन्या तु अन्तर्मुहूर्तम् ॥ ११४ ॥ शमें रहे हुए हैं। तथा (बाय-बादाः) जो बादर जीव हैं वे (लोगदेखेलोकदेशे) लोकके एकदेशमें हैं (इत्तो तेर्सि चउन्विहं कालविभागं बुच्छंइतः तेषाम् चतुर्विधम् कालविभागं वक्ष्यामि) इसके बाद अब मैं इनका चतुर्विध कालका विभाग बतलाता हूं वह इस प्रकार है। (संतई पप्पसन्तति प्राप्य) प्रवाहकी अपेक्षाले ये (अणाझ्या बिय अपज्जवलियाअनादिकाः अपि च अपर्यवलिताः ) अनादि और अनंतर हैं। ता (ठिइं पडुच्च-स्थिति प्राप्य) सवस्थिति एवं कायस्थितिकी अपेक्षा ( साझ्या लपज्जवसिया-लादिकाः सपर्यवलिताः) लादि ३ और सांत ४ है। इन (तेऊणं-तेजसाम्) लेजस्कायिक जीवोंकी (अउठिई-आयुःस्थितिः) आयु स्थिति (उकोसेण तिण्णेव अहोरत्ता वियाहिया-उत्कःण त्रीत् अहोरात्रान् व्याख्याता) उत्कृष्ट तीन दिनरातकी है और (जहन्नियाजधन्यिका) जघन्य (अंतो सुहुत्त-अन्त मुहूर्तम) अन्तमुहर्तकी है। (तं कायं अधुंचओ ते ऊणं कायठिई-तंकाय अनुश्चत्ताम् तेजसा कायास्थितिः) समस्त दे शमा रहे थे तथा बायरा-बोदराः रे ॥४२ ०१ छ त लोगदेसे-लोकदेशे न मे देशमा छे. इतो तेसिं चउविहं कालविभागं वुच्छं-तेषाँ चतुर्विधम् क लविभागं वक्ष्यामि मना ५छी हवे हुं समता यतुविध जना विमा मत छु ते 21 प्रभारी छ-संतई पप्प-संतति प्राप्य प्रवाहानी अपेक्षाथी ते अणाइया वि य अपज्जवसिया-अनादिकाः अपि च अपर्यवसिताः मनाहि मन मनात छे तथा ठिइं पडुच्च-स्थिति प्राप्य सस्थिति भने ४ाय स्थितिनी अपेक्षा साइया सपज्जवसिया-सादिकाः सपर्यवसिताः साह a मने सांत यार छे. मी तेऊणं-तेजसाम ते४२४४ वानी आउठिई आयु स्थितिः माय स्थिति उकोसेण तिण्णेव अहोरत्ता वियाहिया-उत्कपण त्रीन् अहोरात्रान् व्याख्याता उत्कृष्ट हवस रानी छ भने जहान्निया-जयन्यिका धन्य अंतोमुहुत्त-अन्तर्मुहूत्त मत डूतनी छ त कायं अमुंचओ तेऊणं कायठिई-तं कायं अमुञ्चताम् तेजसां कायस्थितिः ते५३५ अयने न छोडता • ते४२४ायि -090"
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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