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________________ ७०३ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ क्षेत्रतः स्कंधपरमाणुनिरूपणम् सम्प्रति स्कन्धान परमाणुं च क्षेत्रतः कथयतिमूलम्-लोएगदेसे लोएं य, भइयव्वा तेउ खेत्तओ ॥११॥ इत्तो कालविभौगं तु, तेसि बुच्छं चैउविहं ॥१२॥ छाया-लोकैकदेशे लोके च, भक्तव्यास्ते तु क्षेत्रतः ॥ ११॥ __ अतः कालविभागं तु, तेषां वक्ष्ये चतुर्विधम् ॥ १२ ॥ टीका-'लोएगदेसे' इत्यादि ।। ते-स्कन्धाः, परमाणुश्च, क्षेत्रतस्तु-क्षेत्रमाश्रित्य तु, लौकैके देशे-लोकस्यचतुर्दशरज्ज्वाऽत्मकस्य, एकदेशः-एकद्वयाऽदि संख्याताऽसंख्यातप्रदेशात्मकः प्रतिनियतो भागो लोकैकदेशस्तस्मिन् , तथा-लोके च भक्तव्या-भजनया विकल्पेन दर्शनीयाः, अत्र चा विशेषतः कथनेऽपि स्कन्धविषयैव भननया ग्राह्या। परमागुस्तु निरंशत्वादेकमेवप्रदेशसवगाह्य तिष्ठतोत्यतस्तत्र भजनाया अभावः परिणत अब स्कन्ध एवं परमाणु का कथन क्षेत्र की अपेक्षा से करते हैं'लोएगदेसे' इत्यादि। अन्वयार्थ-(तेते) वे स्कंध और परमाणु (खेत्तओ-क्षेत्रतः) क्षेत्र की अपेक्षासे (लोएगदेसे लोए य भझ्यव्या-लोकैकदेशे लोके च भक्तव्याः) लोक के देश में तथा लोक में भजनीय है। यहां जो भजना कही गई है वह स्कंध ही जाननी चाहिये परमाणु की नहीं । क्यों कि वह तो निरंश है-अतः एक प्रदेशात्मक आकाश में ही वह रहता है। पुद्गल द्रव्य धर्म अधर्म द्रव्य की तरह एक व्यक्तिमात्र तो है ही नहीं जिससे उसके एक प्रदेशरूप आधार क्षेत्र होने की संभावना की जा सके। भिन्न व्यक्ति होते हुए भी पुद्गलों के परिणाम में विविधता है। एकरूपता હવે સ્કંધ અને પરમાણુનું કથન ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી કરે છે. " लोएगदेसे" त्याला मन्वयार्थ-ते-ते ते २४५ भने ५२भएर खेत्तओ-क्षेत्रतः क्षेत्रनी अपेक्षा लोएगदेसे लोए य भइयव्या-लोकैकदेशे लोके च भक्तव्याः सोनी से देशमा તથા લેકમાં ભજનીય છે. અહીં જે ભજના બતાવવામાં આવેલ છે તે સ્કંધની જાણવી જોઈએ પરમાણુની નહીં કેમકે, એ તો નિરશ છે એથી એક પ્રદેશ. ભક આકાશમાં જ એ રહે છે, પુદગલ દ્રવ્ય ધર્મ અધર્મ દ્રવ્યની માર્ક એક વ્યક્તિ માત્ર તે છે જ નહીં જેથી તેને એક પ્રદેશરૂપ આધાર ક્ષેત્ર હેવાની સંભાવના કરી શકાય. જુદી જુદી વ્યક્તિ હોવા છતાં પણ પુદ્ગલેના
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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