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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३४ स्थितिद्वारनिरूपणम् पूर्वोक्तं निगमयन् , श्री सुधर्मास्वामी प्राहमूलम्-एसा तिरियनरोणां, लेसाण ठिई उ वणिया होई। तेण परंवोच्छामि, लेसाण ठिई उ देवाणं ॥४७॥ छाया---एषा तिर्यनराणां, लेश्यानां स्थितिस्तु वर्णिता भवति । तेन परं वक्ष्यामि, लेश्यानां स्थिति तु देवानाम् ॥ ४७॥ टीका-'एसा' इत्यादिगाथेयं सुगमा । नवरं-तेन परततः परमित्यर्थः ॥४७॥ मूलम्-दसवाससहस्साइं, किण्हाए ठिई जहन्निया होई। पलियमसंखिजइमो, उक्कोसो होई किण्हाए ॥४८॥ छाया--दश वर्ष सहस्राणि, कृष्णायाः स्थिति जघन्यिका भवति । पल्योपमासंख्येयतमः, उत्कृष्टा भवति कृष्णयाः ॥ ४८ ॥ की संभवता नहीं है। इसलिये ही सूत्रकारने इस सूत्र में नौ वर्ष कम एक पूर्वकोटी काल इस शुल्कलेश्या का स्थितिकाल कहा है ॥४६॥ पूर्व बात को समाप्त कर अब श्री सुधर्मास्वामी अगली बात का प्रस्ताव करते हुए कहते हैं-'एमा' इत्यादि। ___अन्वयार्थ हे जम्बू ! ( एसा ठिई तिरियनराणां वणिया होइ-एषा स्थितिःतिर्यङ् नराणां लेश्यानां वर्णिता भवति ) यह स्थिति मैं ने तिर्यश्च एवं मनुष्यों की लेश्याओं की कही है। (तेणपरं-तेन परम् ) अब इसके बाद में (देवाणं लेसाण ठिई वोच्छाभि-देवानां लेश्यानां स्थिति वक्ष्यामि) देवताओं के लेश्याओं की स्थिति कहता हूं॥४७॥ સૂત્રમાં નવ વર્ષ ઓછા એક પૂર્વકટી કાળ આ શુકલ લેસ્થાને સ્થિતિકાળ બતાવેલ છે. ૪૬ પૂર્વની વાતને પૂર્ણ કરીને શ્રી સુધર્માસ્વામી હવે આગળની વાતને प्रस्ताव ४२ai ४३ छ -“ एसा " त्या! __ मन्वयार्थ- मू! एसा तिरिय नराणां लेसाण ठिईउ वणिया होइएषा तिर्यड नराणां लेश्यानां स्थितिस्तु वर्णिता भवति स्थिति में तिय यमन मनु. હોની લેશ્યાઓની કહી છે. હવે આના પછી દેવતાઓની લેશ્યાઓની સ્થિતિ કહું છું,
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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