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________________ ६२२ - उत्तराध्ययनसूत्र अनेन कृष्णलेश्यायाः सद्भाव एव पञ्चास्त्रवप्रमत्तत्वादीनां दर्शनात् तेषां लक्षणवमुक्तम् । यो हि यस्य सद्धाने एव भवति स तस्य लक्षणमुच्यते, यथो उप्णत्वमग्नेः, एव सुत्तरत्रापि लक्षणत्वभावना कार्या ॥ २२ ॥ नीललेश्यालक्षणसाह-- मूलम्-इस्ला अमरिस अतवी, अविज्जमाया अहीरिया । . गेही पओसे ये संदे, पसते रसलोलए ॥ २३ ॥ सायगवेसए ये आरस्साओ, अविरओ हो साहस्सिओ नरो। एयजोर्ग समाउत्तो, नीललेसं तुं परिणले ।। २४ ॥. __छाया--ईर्ष्या अमर्ष अतपः, अविद्या माया अहीकता । गृद्धिः प्रद्वेषश्च शठः, प्रमत्तो रसलोलुपः ॥ २३ ॥ सातगवेषकश्च आरम्भात् अविरतः क्षुद्रः साहसिको नरः। एतद्योगसमायुक्तो णीललेश्यां तु परिणमति ॥ २३ ॥ टीका--'इस्ला' इत्यादिईर्ष्या-परगुणासहनं च, अमर्पः-अत्यन्तरोषाभिनिवेशः, अतपः-तपस्याया नाम लेश्या है । इस कृष्णलेश्या के सद्भाव में ही पंचास्रवप्रमत्तप्राणी बना रहता है । त्रिगुप्ति ले अगुप्त रहता है आदि २। इसीसे इनको कृष्णलेश्या के लक्षण रूप से कथित किया गया है। जो जिसके सद्भाव में होता है वह उसका लक्षण होता है, जैसे उष्णताके सद्भाव में अग्नि होती है। अत: जिस प्रकार अग्नि का लक्षण उष्णता है उसी प्रकार पञ्चास्रव प्रमत्त आदि भी कृष्णलेश्या के लक्षण हैं ॥ २२॥ ., - सूत्रकार नीललेश्या के लक्षण कहते हैं-'इस्सा' इत्यादि। ... अन्वयार्थ (इस्सा-ईया) पर के गुणों को सहन नहीं करना (अमरिस-अमर्षः) रोष करना तथा सदा रोषमय परिणाम रखना પાંચ આસવ પ્રમત્ત પ્રાણું બનેલ રહે છે. ત્રણ ગુપ્તિથી અગુપ્ત રહે છે. કરે. વગેરે. આથી જ એને કૃષ્ણલેશ્યાના લક્ષણરૂપથી કહેવામાં કરવામાં આવેલ છે. જે જેના ભાવમાં હોય છે તે જ તેનું લક્ષણ હોય છે. જેમકે, ઉષ્ણતાના સદુભાવમાં અગ્નિ હોય છે. આથી જે પ્રમાણે અશિનું લક્ષણ ઉણતા છે, એ જ પ્રમાણે પાંચ આસવ પ્રમત્ત આદિ કૃષ્ણલેશ્યાનાં લક્ષણ છે. રિરા: ... सूत्रा२ नोवेश्यानां सक्षर ४ छ-" इस्सा" त्या ! - । ...मन्वयार्थ इस्सा-ईर्ष्या मानना ने सडन न ४२सा, : अमरिस:
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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