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________________ ७२. प्रियर्दा नी टीका २२ नेमिना रचरिननिरूपणम् छाया-मा मत्रागना सनी, प्राजयत्तत्र बहुम् । ___ वजन परिजन चैव, गीलवती हुश्रुता ॥३२॥ टीका--'मा परडया' इत्यादि। प्रत्रनिता सनो-प्रवच्याप्रगान नर गीलपती-मूलोनरगुणयुक्ता बहुश्रुता अधीनमराहोपात्रा सा राजीमती मावी तर-द्वारकाया वह म्बजनभगि-यादिवर्ग परिजन पर यादिवर्ग चा पानाजयन्दीसामग्राहयत् । राजीमती भगिन्यादीना मग्यादीना च मतगती मात्रामयतिनि-ममदाय ॥३॥ __ अथ तदनन्तर वक्तव्यतामाहमूलम्--गिरि चे रेवय जती, वासेणोला उ अतरा । बोसते अधयारम्मि, अंतो लयणस्स सा ठियों ॥३॥ आया-गिरिं च रैवतर यान्ति, चर्पणार्दा तु अन्तरा । वर्पति अन्धकारे, अन्तर्लयनग्य सा स्थिता ॥३३॥ टीमा---'गिरि च' इत्यादि। ___ च-पुनरन्यदा भारदरिष्टनेमि वन्दनाध रैवतक गिरिं यान्ती उन्ती फिर राजीमतीने क्या पिया? सो कहते हैं-'मो' इत्यादि । अन्वयार्य-(पन्यहा मती-प्राजिता मती) दीक्षित होकर मुलो त्तर गुणो के परिपालन करने मे अतिशय सावधान एव (हुस्सुयायस्ता ) उपांगसहित साल गो के अभ्यास से विशिष्टजान सपन्न (मा-सा) उम मा वी राजीमतीने (लहि-तर) द्वारिका में (रह सयण परियण चेव-रह स्वजन परिजन चैव) अपनी पहिनो नारिको को गव साग्वजनों को (पायावेमी-प्रावाजयत्) दीक्षाग्रहण करवाई। इन सरकी सख्या मातमी ७०० थी ॥३२॥ पछी मती १ ४ १ माने 30--"सो" त्याला ___ मन्वयार्थ:--पपइया सती-प्रजिता सती दीक्षा न भुत्तर गुऐनु पनि पान ३२वामा अतिशय सावधान मने पहम्मया-वह श्रुता GIn सहित सपा અગોનું અભ્યાસથી વિશિષ્ટ જ્ઞાન પ્રાપ્ત ક નર નાણા એ સાવર ગમતીએ तहि-तत्र द्वारा बहुसयण परियण चेप-बहु वजन परिजन चैव पातामा मनो तभर अन्य Avilaना पब्बारेमी-प्रागाजयत् सीमा पार पानी से ज्य વાત હ૦૦ની હતી ૩રા
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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