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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे टोका--'सुय मे' इत्यादि। सुधर्मास्त्रामो जम्बूस्वामिन प्रत्यार--हे आयुप्मन ! जम्यूः ! भगरता= ज्ञानादिगुणयुक्तेन तेन लोकत्रयमसिद्धेन तीर्थकरेण ज्ञातपुरमहागीरण एप-यमाणमकारेण आरयातम्-सफलजीवभाषापरिणामिन्या भाषया अथितम् । तन्मया श्रुतम् । यद्वा-आउसतेण' इत्यक परम्, आवसता इति ठाया। 'मया' इत्यस्य विशेषणम् । आ-शास्त्रमर्यादानुसारेण, गुरुकुख्यासे बसता मया तत् श्रुतम् । भगवत्कषितमेशाय तवाग्रे वर्णयामि, न तु म्यमनीपया परिकल्प्यतिभार । भग वता यदास्यात तदाह-इह-अस्मिन् मायने ग्वलुमनिश्चयेन स्थरिपूसालिन भगवद्भिः समग्रेश्वयादि गुणयुक्तस्तीर्थकरै दश दशाग्यकानि ब्रह्मचर्यसमाधि स्थानानि ब्रह्म-कामसेवनत्यागस्तत्र चरण ब्रह्मचर्य, तस्मिन् समापिः मम्यग सुधर्मास्वामी जबूस्वामी से कह रहे है कि (आउम-आयुष्मन्) हे आयुष्मन् । (भगवया-भगवता) ज्ञानादिक गुणों से युक्त (तेण-तेन) उन लोकत्रय प्रसिद्ध ज्ञातपुत्र तीर्थकर श्री महावीर प्रभुने (ग्वमस्वायएवमाख्यातम्) सफल जीवों की भाषा मे परिणमित होनेवाली अपनी दिव्यवाणी द्वारा इस-वक्ष्यमाण-प्रकार से कहा सो वह (मे सुय-मया श्रुतम्) मैने सुना-अथवा-(आउसतेण) यह एक पद भी हो मकता है इम की छाया "आवसता" ऐसी होती है इसका अर्थ "आ-शास्त्रीय मर्यादा के अनुमार-गुरुकुल मै निवास करनेवाले मैने" ऐसा होता है। इससे सुधर्मास्वामी का यह अभिप्राय प्रकट होता है कि वे जो कुछ जबू स्वामी से कह रहे हैं वह अपनी ओर से नहीं कह रहे है किन्तु महावीर प्रभु से उन्हों ने जैसा सुना है वैसा ही वे जबूस्वामी से प्रकट कर कह रहे है । (इह खलु थेरेहि भगवतेहिं दसबभचेर समाहिहाणा पण्णत्ता स-पयार्थ:-सुधारवामी स्वामीन ही रह छ , आयु भन्! भग वया-भगवता नाना शुशथी युत तेण-तेन ये तय भ प्रसिद्ध ज्ञान पुत्र ती ४२. श्री महावीर प्रभुणे एवमक्खाय-एबमारयातम् स४॥ यानी ભાષામા પરિમિત થનારી પોતાની દિવ્ય વાણી દ્વારા આ વયમા પ્રકારથી કહ્યું તે मे सुय-मया श्रुतम् में सामन्यु मया-आउसतेण-- ४ ५६ ५५ यश छ मानी छाया "आवसतासी थाय छे माना अथ " --शास्त्रीय भयो। અનુસાર ગુરુકુળમાં નિવાસ કરનાર મે ” એવો થાય છે આથી સુધર્માસ્વામીને એ અભિપ્રાય પ્રગટ થાય છે કે, તેઓ જે કાઈ જખ્ખસ્વામીને કહી રહ્યા છે તે પોતાના તરફથી ન થીરતા પર તુ મહાવીર પ્રભુ પાસેથી તેમણે જે કાઈ સાભળેલ છે તેજ प्रमाणे प्रगट ४२ भूस्वामीन 387 २८ छ इह खल्लु थेरेहिं भगवतेहि दसवभ
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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