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________________ प्रियदशिता टीका अ २२ नेमिनाथचरितनिस्पणम् तत.मूत्रम्--मत्त चे गंधहत्थि च, वासुदेवस्स जि,गं । आरूढो सोहई अहिय, सिर" चूडामणी जहा ॥१०॥ छाया--मत्ता गन्यहस्तिन च, यामु'यस्य ज्येष्ठरम् । आरूट शोभतेऽधिक, शिरसि चुडामणिया ॥१०॥ टीका-'मत्त च' इत्यादि--- __च-पुन: वासुदेवम्यश्रीकृष्णस्य ज्यटक प्रधान पट्टहस्तिनमित्यर्थ., मत्तदृप्त, गन्यहस्तिन-गनविशेपम्, आस्ट -सन् अधिक शोभते, यया गिरसि चूडामणि' । यथा मस्तके चुडामणि -गोमते, तथैव गजारूढो भगवानरिष्ट नेमि. परमशोभा प्राप्तवानिति भार ॥१०॥ भावार्य-अय नेमिकुमार को वरराजा बनाने के लिये वर का वेप उनपर सुसजित किया जा रहा है। यही वात इम गाथा द्वारा प्रकट की गई है। सन से पहिले उनको सब प्रकार की औपधियों से मिश्रित जल द्वारा स्नान कराया गया। कौतुक मगल कार्य किये गये। दिव्ययुगलवस्त्रों का उन्होने परिधान किया। और समस्त आभूषणों से फिर वे खूब सुमज्जित होकर सुशोभित होने लगे॥९॥ इमके पाट-'मत्त च' इत्यादि। अन्वयार्थ-(च-च) याद मे नेमिकुमार को (वासुदेवस्स जिट्टग मर गधहत्यि आरूढो-वासुदेवस्य ज्येष्टकम् मत्त गन्धरस्तिन अरूढ ) कृष्ण महाराज के प्रधान मदोन्मत्त गन्धहस्ती पर आरूढ किया गया। (अहिय सोहई जहा सिहे चूडामणी-अधिक गोभते यथा शिरसि चूडामणी) ભાવાર્થ-જ્યારે નેમિકુમારને વરરાજા બનાવવાને માટે વરાજાના વેશથી તેમને સુસજજીત કરવામાં આવેલ હતા ત્યારે સહુથી પહેલા તેમને સઘળા પ્રકારની ઔષધી ચુકત જળથી સ્નાન કરાવવામાં આવ્યું અને કૌતુક મગળ કાર્ય કરવામાં આવ્યા આ પછી તેમને દિવ્ય એવા બે વસ્ત્રો પહેરાવવામાં આવ્યા અને પછી સઘળા આશિષ બેથી તેમને શણગારવામાં આવ્યા જેથી તેઓ ઘણાજ સુરોભિત લાગવા માંડયા લા त्या पछी-"मत्तच" त्या सन्क्याथ-च-च सार पछी भिभारने वासुदेवस्स जिहग मत्त गाहथि आरूढो-वासुदेवम्य ज्येष्ठकम् मत्त गधहन्तिन यारूढ. य महारान प्रधान सेवा महान्मत्त हाथी पर योमायामा भाज्या अहिय सोहई जहा सिर चूडामणी-अधिक शोमते यथा शिरासि चूडामणी ते समय से मना 64
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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