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________________ ५४४ তালন कीदृश पुनस्तासा तीनादिस्पयामित्यादिमूलम्-"जारिसा माणुसे लोग, ताया दीसति चेयणा । एतो अणतगुणिआ, नरएसें दुक्खवेयणा ॥७३॥ छाया--याश्या मानुपे लोके, तात म्यन्ते वेदना। ___ इतोऽनन्तगुणिताः, नरकेपु दुवदनाः ॥७३॥ टीका--'जारिसा' इत्यादि। हे तात ! मानुपे लोके यादृश्यों वेदना दृश्यन्ते, इतोऽपि-पताभ्यो वेदनाभ्योऽपि अनन्तगुणिताः दुखवेदना नरकेपु भान्ति ॥७३॥ न च नरकेप्येव वेदना मयाऽनुभूता', अपि तु सास्वपि गतिप्वनु भूताः' इत्याहमूलम्-सव्वभवेसु असाया, वेयणा वेडया मए। निमेसंतरमित्तपि, ज साया नत्थि वेयणा ॥७॥ छाया-सर्वभवेषु असाता, वेदना वेदिता मया । निमेपान्तरमात्रमपि, यत् साता नास्ति वेदना ॥७४|| जिनके सुनने से भय लगता है ऐसी वेदनाओं को (मया-मया) मैं ने (नरसु-नरकेपु) नरकों में (वेश्या-वेदिता) भोगा है ॥ ७२ ॥ उन वेदनाओंकी तीव्रताका वर्णन करते है--'जारिसो' इत्यादि। अन्वयार्थ--(ताया-तात) हे भात तात !) (माणुसे लोए-मानुषे लोके) मनुप्यलोक मे (जारिसा-याद्रश्या) जिस प्रकारकी (वेयणा-वेदना) वेदनाएँ देखने मे या भोगने मे आती है (पत्तो-इत) इनसे भी (अणतगुणिया-अनतगुणिता) अनतगुणित (दुक्ख वेयणा नरण्सु-दु ग्ववेदनाः नरकेषु) दु.खवेदनाएँ मैने नरको मे भोगी हैं ।। ७३ ॥ भीम २ सामणवायी लय दारी छ मेवी वहना। मए-मया में नरपसु नरकेषु न४मा वेश्या-वेदिता सावी छ ॥ ७२ ॥ मा वहनामानी तीव्रतानु पाणुन ४२ छ-"जारिसो" त्याहि ! मन्वयाताया-तात हे माता पिता ! माणुसे लोए-मानुषे लोके मनुष्य मा जारिसा-याश्या आनी वेयणा-वेदना वहनासानेपामा मन लागव पाभा यावेछ एत्तो-इत तनाथी पर अणत गुणिया-अनत गुणिता. मनेगी दुक्ख वेयणा नरएसु-दुख वेदना नरकेषु भवनायो मे नरीमा लासपीछे ॥ ७ ॥
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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