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________________ प्रियदशिनी टीका अ १९ मृगापुमचरितवर्णनम् ५०७ तथामूलम्बालयोकवले चेर्व, निरस्साए उ. सजेमे। १. . असिधारागमणं चे, दुकर चरिउ तवो ॥३७॥ डाया- वालुका कवल दव, निराम्बादस्तु सयम । . असिधारागमनमिर दुपर चरितु तप ।।७।। टीका-- बालुयाकवले' इत्यादि । हे पुत्र । सयम =माणानिपातग्रिमणादिस्प सप्तशविध. सयमस्तु चालुसाफवल 1 निरास्वार वादर्जित =नीरमोऽस्ति । तथा प्रसिधारागमनमिव असि =खड्गम्तस्य धारा-निगिताग्रभागस्तदुपरि गमन यया दुप्फर तयैव-तप = अनशनादिद्वादशधि चमि दुप्फरम् ॥३७॥ तथा-'यालया कवले' इत्यादि । ___अन्वयार्थ हे पुन । (मजमे-सयम ) स्यम पाणातिपात विर मण आदिरूप सत्रह प्रकार का सरम (बालआफवले चेव निरस्मारबालकायल इव निरास्वाद.) पालका के क्चल की तरह स्वादवर्जित है-सर्वथा नीरस है । तया (अप्तिधारागमण चेव तवो चरिउ दुकरअसिपागमनमिव तप चरितु दुपरम) तलवार की तीक्ष्ण धार पर चलना जैसे दुप्फर है वैसे ही अनशन आदि चारह प्रकार के तपो का तपना भी टुप्पर है। भावार्थ-चाल का क्वल सर्वथा जैसे स्वादरहित होता है वैसे ही यह संयम है। एव अनान आदि बारह प्रकार के तपोमा तपना ऐसा दुर है जैसा दुष्कर तलवार की तीक्ष्ण धार पर चलना होता हैं। अत. हे बेटा। सयम मत लो ॥३७॥ तथा-"पालुया कवले" या -म-पया 3 पुजा सामे-म म सयम-प्रातिपात (4म मा ३५ मत्ता प्रहार सयम पालुआ स्वले चेर निरम्साए-बालुसरा क्वल उन निरास्वाद રેતીના કોળીયાની માફક નાદવત છે-સર્વથા વીરસ છે તથા તલવાની તીવણ ६.० ७५२ याबारे असिपारागमण चेर तयो चरिडं दुकर-प्रसिधारागमन मित्र तप चरितु दुष्करम् हु७२ छ, सेवी ते अनशन माहि मा२ प्रधान તપને તપવા એ પણ દુષ્કર છે ભાવાર્થ...રેતીનો કળીઓ સર્વથા જેમ વાદ હિત હોય છે તે જ આ સયમ છે અને અનશન 'આદિ બાર પ્રકારના તપોને તપવા એવા દુષ્કર છે, જાણે કે તલવારની દુષ્કર તીક્ષ્ણ ધાર ઉપર ચાલવાનું હોય છે આથી હે બેટા साधु थवानु छोडी । .७॥
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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