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________________ - %3 उत्तराध्ययनसूत्रे दृष्टान्तमुक्ता दार्शन्तिकमाह-- मूलम् एवं धम्मपि काऊणं, जो गच्छंड पर भवं। गच्छतो सो" मुंही होडे, अप्पकम्मे अवेयेणे ॥२१॥ छाया-1 धर्ममपि कसा, यो गति पर भाम् । गच्छन् स मुखी भाति. अल्पामा अवेदनः ॥२१॥ टीका-~'ए' इत्यादि। एवम्=पाथेयपुरुषरत् यो जीरो धर्म सावधव्यापारवनरूपम् कृत्वाचरित्वा पर भव गच्छति । 'अपि' शब्द.पूरणे परभर गच्छन् अल्पकर्मा पापकर्मरहितः, 'अल्प' शब्दोऽत्रामानार्थकः, 'कर्म' भन्दः पापकर्मपर', अवेदनःजाने को निकलता है तो पास में खाने पीने की यथोचित सामग्री की वजह से उसको किसी प्रकार की चिन्ता नहीं रहती है और अपने इष्ट स्थान पर आनद से मार्ग को पार करता हुआ पहुँच जाता है। यह व्यवहार में स्पष्टरीति से देखा जाता है।॥ २० ॥ अब इसी पर दान्तिक कहते है-'राव धम्मपि' इत्यादि । अन्वयार्थ--(पव--एवम्) इसी तरह (जो-यः) जो प्राणी (धम्मधर्मम्) सावधव्यापार परिवर्जनरूप धर्म (काऊण-कृत्वा) पास में करके (परभव गच्छद-पर भव गच्छति) परलोक जाता है (सो स') वह पर भव को जाने वाला जीव (अप्प कम्मे अल्पकर्मा) पाप कर्म रहित हो कर (अवेयणे-अवेदन)असातवेदनरूप दुःख से रहित हो जाता है और इस तरह वह (सुही होइ-सुग्वी भवति) सुखी बन जाता हैજે માણસ ઘેરથી ભાતુ બાંધીને બીજે ગામ જવા માટે નીકળે છે તે સાથે ખાવા પીવાની જરૂરત પુરતી સાધન સામગ્રી હોવાના કારણથી તેને ખાવા પીવા કાઈ પણ જાતની ચિંતા થતી નથી અને પોતાના પારેલા સ્થળે-આનંદથી માર્ગને પૂરે ४१ पायी तय छ मा पात व्यवहारमा २५ शत माय छ ॥ २० ॥ 6वे माना ६५२ हटाति४ छ--"एव धम्मपि'. त्यात! अन्वयार्थ--एक-एवम् साशते जो-य २ प्राण धम्म-धर्मम् साप व्यापार परिव ३५ यम काउण-कृत्वा साथे धन परभव गच्छइ-परभव गच्छति ५२मा जय छ सो सो ५२०५मा ना२१ अप्पकम्मे अल्पकर्मा ५४म ति यधन अवेयणे-अवेदन सा-वहन३५ मथी हतन छ से शत ते मुही होइ-सुखी भवति सुजी पन छ साता ३६३५ सुम
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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