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________________ ३१० उत्तगयनसत्र मिनगासनेनमिनेन्द्र प्ररपिन धर्म निमाता.मानता, निगम्य च श्रामण्य पारिने पस्थिता:मारता नभान । दिगम नमि नगतिनामान व-पारोऽपि रानानी जिनशामने प्राय मारित्र सम्यम्परिपाउयन्ती भवभ्रमणा द्विरता' सिद्धिगति प्राप्ता इति भावः ॥४६४७॥ चतुएं प्रत्येसुद्धेषु ततीयस्य नमिरानः क्या नामा ययने गता, अत्र करमण्डू द्विमुग्य नभोगतीना क्या नमो गियने ॥ अब फरकण्डराजस्था ॥ __ आसीवर भरतमो फरिददेगे चम्पानगा प्रलपरानमो गणरत्नाना मुदापि देविाहनो नाम राजा । तम्य राशीगदिगुणममरहता चेटारान दहिता पमारती नामासीत्पटमटिपी। मा हि तृपेण सह शिविधान भागान भुजाना क्रमेण गर्भरती जाता। ता राया पर दोग्दो जात यदह कृत राज्यमे स्थापित करके (जिगगासने-जिनशासने) निने प्रभु नारा प्ररूपित धर्ममे (निस्पता-निकान्ता.) प्राजित हुए-(सामप्ण पन्ज वहिया-श्रामण्य पर्युपस्थिता) और चारित्रकी आराधनासे मुक्ति प्राप्त की। इन चार प्रत्येः बुहोंमेंसे तृतीय नमि राजमपि की कथा ता नवम अध्ययन मे कही जा चुकी है। केवल करकण्ट्ट विमुख तथा नगगति की कथा करनी बाकी है सो उनमें प्रथम करकण्डू की कथा इस प्रकार है इस भरतक्षेत्र के अन्तर्गत कलिङ्ग नामका एक देश है । उसम चपा नामकी नगरी थी। उसका अधिपति दधिवाहन नामका राजा थे। यह गुणरूपी रत्नो के समुद्र एव विशिष्ट पराक्रम शाली था इनकी पटरानी का नाम पद्मावती या। यह चेटक राजा की पुत्री था। सने-जिनशासने छनेन्द्र प्रसा। स्थापित ममा निरखता-निष्क्रान्त. स्थापित मन्या-दीक्षा शिकार ४२ अनेसामण्णे पजवद्विया-श्रामण्य पयुपस्थिता ચારિત્રની આરાધનાથી મુકિત પ્રાપ્ત કરી આ ચાર પ્રત્યેક બુદ્ધોમાથી ત્રીજા નમિરાજ ઋષિની કથા તે નવમા અભ્ય નમાં કહેવાઈ ગયેલ છેઆમાના કરકન્ડ, પ્રિમુખ અને નવગના યથા કહેવાના બાકી છે તે આમાં પ્રથમ કરકન્વની કથા આ પ્રકારની છે— આ ભારતક્ષેત્રની અ દર કલિગ નામને દેશ કે આમા ચ પા નાની નગ હતી એના અધિપતિ દધિવાહન નામના રાજા હતા તે ગુણરૂપ રત્નોના સ% અને વિશિષ્ઠ પરાક્રમશાળી હતા તેમની પટ્ટરાણીનું નામ પદ્માવત હતું તે *
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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