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________________ १४० उत्तराध्ययनस्ते छाया-अथ च्युतो ब्राह्मलोकाद, मानुष्य भरमागतः । । ___आत्मनश्च परेपा च, आयुर्माने यथा तथा ॥२९॥ टीका--'से' इत्यादि। अथ-आयु- समाप्त्यनन्तर बामलोकात् पञ्चमाल्पात् च्युतोऽद मानुष्य मनुष्यसम्बन्धिन भव-जन्म आगत प्राप्त । इत्थमात्मतो जातिस्मरणात्मकमतिभयमुक्तवातिशयान्तरमाह-च-पुनरहम् , आत्मनः ससस्य परेपाम् अन्येपा च भायु.जीवित यया-येन प्रकारेण अस्ति, तथा नेन प्रकारेणैर जाने । इदमुप लक्षण ततश्च-गतिमपि जानामीत्यर्थः ॥२९॥ क्षत्रियराजपिरित्य प्रसद्गतोऽपृष्टमपि सत्तान्तमावेद्य सम्प्रत्युपदिशनाहमूलम्- नाणारुइ चै छंद च, परिवजिज सजए। अणटा जे ये सव्वत्था, इ. विजाम संचरे ॥३०॥ छाया-नानारुचि च उन्द च, परिवर्जयेत्सयत' । अनर्था ये च सर्श., इति विद्यामनुसचरे ॥३०॥ तथा-'से चुओ इत्यादि। अन्वयार्थ-(अह-अय) देवभव सरधी आयु के समाप्त होने पर (बभलोगाओ चुओ-ब्रह्मलोकात् च्युत.) उस पचम स्वर्ग से चवा हुआ मै (माणुस्स भवमागओ-मानुष्य भवमागत ) मष्नुय मवधि भव में आया है। इस प्रकार अपना जातिस्मरणात्मक अतिशय कहकरके उन क्षत्रिय राजर्पिने सजयमुनि से यह भी कहा कि-मै (अप्पणो परेसिं च जहा आउ तहा जाणे-आत्मन परेषा च यथा आयु. तथा जाने) अपन तथा परके आयुष्यको भी वह जितना है उसको मैं जानता ह । उपलक्षण से गतिको भी जानता है ॥२९॥ तथा--"से चुओ" त्या। मन्याय-अह-अथ देवसव३पी मायुष्य यूथवाथा वम लोगाओ चुओब्रह्मलोकातच्युत त पाया गथी मायुध पुरे। यता त्याची व्यवीरमाणु स्स भवमागओ-मानुष्य भवमागत मनष्यसमा मावेस छु मा प्रमाणे પિતાનુ જાતિમરણાત્મક વર્ણન કરીને તે ક્ષત્રિય રાજર્ષિએ સ જય મુનિને એ पण छु, अप्पणो परेसिं च जहा आउ तहाजाणे-आत्मन परेपा च यथा आयु तथा जाने मा३ यानानु तथा मीनु आयुष्य ८९ छे ते य त छु ઉપલલણથી ગતિને પણ જાણુ છુ પર
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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