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________________ • उत्तराध्ययनसूत्रे वसति , तया-ह-पिमानिलनिवारणसमर्थ 'चादर' इति मापा प्रसिद्ध प्रा वरण च अस्ति । उपलक्षगत्वान-रज हरणपानाद्यपकरण चापि मम पर्याप्तम् , तथा -मम भोक्तम् अशन दिकम् , तथर पातु-जलदग्गानिक पान च उपपद्यते पर्याप्त मिलति । तथा-यद् जीपाजीपानि तत्व वर्तते, तदप्यह जानामि । इति= अम्माद हेतो हे भदन्त । अतेन-शास्त्रा ययनेन किं नाम करिष्यामि नास्ति किमपि शास्त्राध्ययनस्य प्रयाजनमित्यर्थः । अय भाष'-'ये भान्तोऽधीयते, ऐसे श्रमणको जर गुरु आगम पढनेके लिये कहते है, तो वह क्या कहता है-यह बात इस गाया द्वारा सूत्रकार प्रदर्शित करते है 'सेना दढा' इत्यादि अन्वयार्थ--(आरसु-आयुप्मन् ) है, आयुप्मन् गुरु महाराज । (मे-मे) मेरे पास (सजा-शय्या) जो वसति है वह (दढा-दृढा) वात आतप एव जलादिक के उपद्रवो से सुरक्षित है। तथा (पाउरण दढप्रावरण दृढम् ) जो चादर है वह भी शीत आदि के उपद्रवसे मेरी रक्षा करसके ऐसी है। इसी तरह रजोहरण एव पात्रादिक उपकरण भी मेरे पास पर्याप्तमात्रामे है। तथा (भोत्त पाउ उप्पज्जइ-भोक्तु पातु उपपद्यते एव) खाने पीने को प्रर्याप्त मिल ही जाता है (ज वदृइ त जाणमि-यईर्तते तत् जानामि) शास्त्रमे जीव अजीव आदिक जो तत्त्ववर्णित हुए हैं उनके विषयमे भी मैं जानता है । इसलिये (भते-भदन्त) हे भदन्त ! (सुण्ण किं नाम काहामि-श्रुतेन कि नाम करिष्यामि) शास्त्र पढकर अब मैं क्या करूंगा। એવા શ્રમણને જ્યારે ગુરુ આગમ ભણવાનું કહે છે ત્યારે તે શું કહે છે? से पात मा गाथा द्वारा सूत्रा२ प्रशित ४२ छ-"सेज्जा दढा" त्या सन्क्या-आउसु-आयुष्मन् . आयुष्यमान गुरु मारा । मे-मे भारी पासे सेजा-शग्यारे बसति छ ते दहा-दृढा वात माता५-त। सन 61 64वाथी सुरक्षित छ, तथा पाउरण दढ-पावरण दृढ२ या छे ते पर ઠડી આદિના ઉપદ્રવથી મારી રક્ષા કરી શકે તેમ છે આજ પ્રમાણે રજોહરણ અને पात्रा6s 64४११ ५४ भारी पासे पर्याप्तमात्रामा छ तथा भोत्तु पाउ उप्पज्ज -भोक्त पातु उपपयते एव भावाधावानु पर्याप्त मणी य छ जबइ त जानामियद्वार्तते तत् जानामि शास्त्रमा ७१ ७१ माहि तत्पनु वन रायेस छ अमना विषयमा पहुना छु मा २ भते- भदन्त महन्त । શાસ્ત્ર ભણુને હવે હું શું કરું ?
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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