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उत्तगाध्ययनसमें मूलम्-अण्णवसि महोहसि.. नावा विपरिधावट।
जर्सि गोयममारूँढो,कह पार गमिस्सेंसि ॥७॥ छाया--भर्ण महोचे, नौपिरिधापति ।
यस्या गौतम ! पारदः, कय पार गमिप्यसि ? 1७०॥ टीका-'अण्णवसि' इत्यादि ।
महामहापवाहयुक्ते अर्णवे-समुद्रे नी रिपरिधापति-इतस्तत: परिभ्र. मति । हे गौतम ! यस्या नौकाया त्वम् आल्टोऽसिनस्थितोऽसि । तया नौकया त्व कुथ-केन प्रकारेण पार-परतीर गमिप्यसिम्यास्यसि ॥७॥
गौतमः माहमूलम्-जो उ अस्साविणी नावा, न सौ पारस्स गांमिणी।
जा निरस्ताविणी नोवा, सा उ परिस्त गामिणी ।।७१॥ छाया-या तु प्रासारिणी नौः, न सा पारस्य गामिनी । . या निरासाविणी नौः, सा तु पारस्य गामिनी ।।७१॥ टीका-'जा उ' इत्यादि।
या तु नौः आस्राविणी-सन्द्रितया जलागमसहिता भवति, सा पारस्य__उसी सशय को कहते हैं--'अण्णवसि' इत्यादि।
अन्वयार्थ-हे गौतम !(महोहसि अण्णवसि-महोघे अर्णवे) महाप्रवाह से युक्त समुद्र मे (नावा विपरिधावति-नौर्विपरिधावति) नौका डगमगाने लगती हैं। तो आप (जसि गोयममारूढो-यस्या गौतम आरूढ) जिस नौका पर बैठे हुए हो वह (कह पार गमिस्ससि कथ पार गमिष्यसि) नौका आपको समुद्र के पार कैसे पहुँचा सकती है ॥७॥
इस बात को सुनकर गौतम स्वामी ने इस प्रकार कहा-'जा उ' इत्यादि। __ अन्वयार्थ-हे भदन्त ! (जा उ अस्साविणी नावा-या तु अस्राविणी नौः)
सो सशयन ४ छ--"अण्णवसि" त्या!
मन्या :- गौतम! महोहसि अण्णवसि-मेहौधे अर्णवे भड़। प्राgal युत समुद्रमा नावा विपरिधावति-नौविपरिधावति नी आमाका साणे छ । भाप गोयम जसि पारुढो-गौतम यस्या आरूह २ नौ ७५२ मा छ त Hist कह पार गमिस्ससि-कथ पार गमिष्यसि मापने भभुद्रया पा२ वी शत પહોચાડી શકશે? પ૭૦૧
मा पातने सामी गौतम स्वामी या प्रसारथी -"जा उ"त्याle' मन्वयाथ-महन्त ! जा उ अस्साविणी नावा-यातु अस्राविणी नो