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________________ ९०० यद्यार्थ- (गजीत लेने पर (जीत लिये है। उत्तगययनसन जीमो मनोगृह्यते । एर आत्मा, चत्वारः कपाया इत्येते पञ्चगामी मया जिना इत्यर्थः। जीरस्य पायल्पा शनयो हिगतापिपश्चमाघमायरा ५२०० सन्ति । भेदोपभेदसहिता. कोधात्यवत्वारः पाया. आत्माचेतिपत्राजिता इतिभार ।। तथा-पञ्चसु नुपु जितेपु. दश-दसरयकार शमी जिता.। पूत्तिाः पञ्च, पश्चन्द्रियाणि चेति दश शो मया जिता "त्यर्थः । तु=पुन , दगधान्दगमकारान् गनुन निवा, अह सर्पगनून-पूर्वोक्तान दशविधान नोकपाया श्व, ग्यलुनिश्चयेन जयामि । ___"अणेगाणसहस्साण, मझे चिसि गोयमा !" इति केगिम्यामिकृत मन्नम्योत्तरमदानार्थ मत्तस्य गातममहामुने 'दमहा उ निमित्ताण, मन्वसन प्रत्युत्तर में गौनमस्वामी ने इस प्रकार का-'गे' इत्यादि । अन्वयार्थ- (गे-एकस्मिन्) ममम्तमार डानाओ में प्रशानभूत आत्मा के (जिए-जिते) जीत लेने पर (पर जिग-पञ्च जिता.) मैंने एक आत्मा और चार पाय ये पाच शत्रु जीत लिये है । जीव के कपाय रूप शत्रु पांचहजार दो सौ ५२०० है। भेद प्रभेद सहित क्रोधादिक, चार कपायो को तथा एक नात्मा को इस प्रकार इन पाच को जीता लिया है (पंचे जिए दरा जिया-पञ्चसु जितेयु 'दश जिता.) तथा इन पाचो के जीत लेने पर दश शत्रु विजित हो जाते है-अर्थात पाचे ये पूर्वोक्त तथा पाच इनद्रिया ये दम शत्रु जीत लिये जाते है। (दसहा उ जिणित्ता सचमत्तू अह जिर्णामि-दशधा'तु जित्वा 'सर्व शत्रुन् अह जितामि) इन दस शर्नुओ को जीत लेने पर ही म ने समस्त' शत्रुआ को निश्चय से जीत लिया है। - - - प्रत्युत्तरमा गीतमस्वाभी मारे ४-"एगे" त्याह! अन्वयार्थ:-~-एगे-एकस्मिन् सालानुसामा प्रधानमृत आत्माने जियेजिते-ती सेवाथी पचजिए-पञ्चजिता में ४ मात्मा मने प्यार ४षायाम પાચ શત્રુઓને જીતી લીધા છે જીવના કષાયરૂપ શત્રુ પાચહજાર બસો (પ૨૦૦ છે ભેદ પ્રભેદ સહિત ક્રોધાદિક ચાર કષાયોને તથા એક આત્માને આ પ્રમાણે पायेने ती सील छ पचजिए दसजिया-पञ्चन जितेस दश जिता तथा मा પાચને જીતી લેવાથી દશ શત્રુ જીતાઈ જાય છે અથાત એ પૂર્વોક્ત પાચ તથા પાચ ઈન્દ્રીચી माम ४२ शत्रमा ती आवाय छ दसहा उ जिणित्ता सव्वसत्तू अह जिणामिदशधा त जित्वा सर्वशत्रन अह जितामि श शत्रुभान तीन भे मे समा शनुमान નિશ્ચયથી જીતી લીધા છે क्रोधादिर, !
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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