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________________ ८९७ प्रियदशिनी टीका २ २३ श्रीपार्श्वनायचरितनिरूपणम् अयाचारमाणिरिविषय संशय स्पष्टपतिमृलम्-अचेलगो यं जो' धम्मों, जो इमों सतरुत्तरो। एगकजपवन्नाण विसे से कि न कारणं ॥१३॥ छाया--अचेलथ या धर्मो, योऽय सान्तरोत्तर । एस्कार्यप्रपन्नया विशेपे किन कारण ? ॥१३॥ टीका--'अचेलगो य' इत्यादि । यश्वायम् अवेल क.-अचेलमानोपेत श्वेत जीणेप्रायमल्पमूल्य वस्त्रम् ,अर्गतअसटिव चेट, तस्याम्तीति-अचेल , स एवाचेलक -परिमितजीणेप्रायाल्पमूल्य श्वेतववपरिधानलक्षणो धर्मो भगवता वर्द्धमानेन देगित । यश्वाय सान्तरोत्तर.मान्तराणि-मानतो वर्णतश्च विशिष्टानि, उत्तराणि-बहुमूल्यानि च सान्तरोत्तराणि नानि सन्त्यस्मिन्निति सान्तरोत्तर.-अनेक वर्ण बहुमूल्य वस्त्रपरिधानलक्षणो धर्मों भगवता पार्श्वनाथेन देगिन । एककार्यप्रयन्नयो -एककार्य=मुक्तिरूपफ्ल, तदर्थ परिग्रह विरमण इस प्रकार से पाच प्रकाररूप मुनिधर्म कहा है सो इसका क्या कारण है। इस प्रकार का उन दोनों तीर्थकरी के शिष्यों को सदेह आ॥१॥ अब मूत्रमार आचारप्रणिति विपया सदेह को प्रगट करते ह'अचेलगो' इत्यादि। अन्वयार्थ (जो अचेलगो य धम्मो-य अचेलक धर्म) प्रभु श्रीवर्द्ध मान स्वामी ने जो यह अचेलक-परिमित, जीणमाय तथा अल्पमूल्यवाले श्वेतवस्त्रों का परिधान करनारूप मुनियम बतलाया है तथा (जो सतरुत्तरो-य अय सान्तरोत्तर) पार्श्वनाथ स्वोमो ने जो अपने शिष्यों को प्रमाण से एव वर्ण से विशिष्ट तथा उत्तर- बहुमूल्य नस्लो का परिधान करनारूप मुनिधर्म कहा है सो (एकरजपवन्नाण विसेसे किनु પરિગ્રહ વિરમણ આ પ્રમાણે પાંચ પ્રકારનો મુનિધર્મ કહેલ છે તે તેનું શું કારણ છે? આ પ્રકારને એ બન્ને તીર્થ કરના શિને સદેહ થયે ૧૨ ७२ सूत्रा२ आया२ प्रविधि विषय सहने प्रगट ४२ छ-"अचेल्गो" त्याला अन्वयार्थ:--जो अचेलगो य धम्मो-य' अचेलक धम' प्रभु श्री व भान સ્વામીએ જે આ અચલક-પરિમિત જીર્ણપ્રાય તથા અ૮૫ મૃત્યવાળા સફેદ વસ્ત્રોને पारधान ४२॥ ३५ मुनियम मतादछ तथा जो सतरुत्तरो-य अय सान्तरोत्तर પાર્શ્વનાથ સ્વામીએ પિતાના શિષ્યોને પ્રમાણુથી અને વર્ણથી વિશિષ્ટ અને બહુમૂલ્ય पत्रीने परिधान ४२३६३५ मुनियम मतावत छ ते एकमजपचन्नाण विसेसे ૧૧૨
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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