SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 955
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - ७५८ इह पञ्चालग्रहण पश्चालदेशस्तस्मिन् समये विशिष्ट समृदिमानासीदिति सूब यति । अन्यथा हि भरतक्षेनेऽपि यद्विशिष्ट वस्तु तत् तदा वामदत्तगृहे आसीत् ॥१३॥ किंच मूलमटेहिं गीपहिं ये वाईएहि, नारीजणाइ परिवारयतो । भुजाहिभोगाई इमाइ भिक्खू, मैम रोयेई पवजा हुक्खं ॥१॥ छाया-नाटथर्गी वैश्व वादित नारी जनान् परिवारयन् । . भुड्स भोगानिमान मिदो! मह्यं रोचते मनग्या दुःखम् ॥१४॥ टीका-'णे हिं ' इत्यादि'हे भिक्षो! नाटयैःद्वात्रिंशभेदोपलक्षितै नाटयः, विविधाङ्गहारादि स्वरूप यह कह रहे है कि पाचाल में एव भरत क्षेत्रमें जितनी भी विशिष्ट वस्तुएँ हैं वे सब इन मेरे भवनों में है अतः आप इन भवनोंको अगीकार करो। "पाचाल" पदसे यह ज्ञात होता है कि उस समय वहा की समृद्धि विशिष्ट थी, नही तो भरतक्षेत्रके कहने से ही उसका ग्रहण हो जाता है। फिर "पाचाल गुणोपपेतम्" ऐसा कहना व्यर्थ पड़ता है। सुनते है कि उच्चोदय मधु आदि प्रासाद जहां चक्रवर्ती की रुचि होती है वही बन जाते है। "गृह" पद वर्तमान मे चक्रवर्ती जहा रहता है उसका बोधक है ॥१३॥ फिर चक्रवर्ती मुनिराजसे कहते हैं—ण हिं' इत्यादि। अन्वयार्थ-(भिक्खू-भिक्षो) हे भिक्षो । (गडेहि-गीएहि य वाइएहि नाटयैः गीतैः वादित्रै.) बत्तीस प्रकारके नाटकोंसे विविधप्रकारके રાજને એવું કહી રહેલ છે કે, પાચાલમા અને ભરતક્ષેત્રમા જેટલી પણ વિશિષ્ટ વસ્તુઓ છે એ સઘળી વસ્તુઓ મારા ભવનમા છે, આથી આ૫ આ ભવનને स्वी१२ ४२। “ पाचाल" ५४थी ये नयी ४ाय है, समये त्यानी સમૃદ્ધિ વિશિષ્ટ હતી નહીં તે ભરતક્ષેત્રના કહેવાથી જ તેમાં તેને સમાવેશ य नय छ पछी “ पाचालगुणोपपेतम् ॥ हे व्यर्थ मन छ સાભળીએ છીએ કે, ઉદય મધુ આદિ ભવન કે જ્યા ચક્રવતી ની રૂચી थाय छे त्या मनी जय छ “गृह" ५४ पभानमा यती' या २७ छ એનું બોધક છે ! ૧૩ છે श पती' मुनिशनने छ ‘णदेहि-त्यादि स-पयार्थ:-भिक्खू-भिक्षो भिक्षु ! णटेहिं गीएहिं य वाइएहि-नाटयै गीत રાત્રિ બત્રીસ પ્રકારના નાટકના વિવિધ પ્રકારના ગીતોથી તથા અનેક પ્રકારના
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy