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________________ ___टीका-'आसिमो' इत्यादि हे मुने ! अन्योन्याशानुगौ-परस्परस्य वशाविनी, अन्योन्यानुरक्तौ परस्पर प्रीतिसपनौ, अन्योन्यहिनैपिणों परस्परस्य हितमान्डको मात्रा द्वावपि पूजन्मनि भ्रातरौ आस्व-अभूव ॥ ५ ॥ 'आवा कुन कुन सहोदरत्वेन समुत्पनी' इत्याह दासा देसपणे आसी, मियां कालिंजरे नेगे। हसां मयगतीरे य, सोवागी कासिभूमीय ॥६॥ देवा ये देवलोगम्मि, आसी अम्हे महिड़ियो । ईमा पो छठिया जोई, अन्नेमन्नण जो विणा ॥७॥ छाया-दासो दशाणे आत, मृगी कालिखरे नगे! - हसौ मृतगलातीरे, वपाको काशिभूमौ ॥६॥ क्या बोले सो कहते हैं-'आसिमो' इत्यादि। अन्वयार्थ-चक्रवर्तीने पहमान पुरस्सर उनसे यह कहा कि-हे मुने ! (अन्नमन्नवसाणुगा-अन्योन्यवशानुगौ) हम तुम (दो वि-यो अपि) दोनों ही पहिले भवमें परस्पर वशवी तथा ( अनमनमणुरसा-अन्योन्यानुरक्तौ) आपसमें अतुल प्रेम सपन्न एव ( अनमन्नहिएसिणो-अन्योन्यहितैपिणी) एक दूसरेके सदा हितेच्छु (भायरा आसिमो-भ्रातरी आस्व) भाई भाई थे। भावार्थ-आधाराज्य लेकर आप सुखी हो। यह बात हम इसलिये कह रहे हैं कि हम और आप पूर्वभवमें सहोदर भ्राता थे। अतः हमको आप की ऐसी दशा देखकर दुःख हो रहा है ॥५॥ तय। शुमाया त नायनी मायाद्वारा अपामा आवछ "आसिमो"-Sत्याle અન્વયાર્થ–-ચક્રવતીએ બહુમાન અને આદર સાથે તેમને કહ્યું કે, હું भनि। अन्नमन्नवसाणुगा-अन्योन्यवशानुगौ ई मन तमे दो वि-द्वौ अपि मन्न सभा मे मीन HIS l अन्नमन्नमणुरत्ता-अन्योन्यानुरक्तौ मा५ सभा मतुस सेवा प्रेम सपन्न भने अन्नमन्नहिएसिणो-अन्योन्यहितैषिणो से भी सहा हितग्छु भायरा आसिमो-नातरौ आस्व मामा उता ભાવાર્થ-અધું રાજ્ય લઈ આપ સુખી થાવ એ વાત હુ એટલા માટે કહી રહ્યો છું કે, હું અને આપ પૂર્વ ભવમા સહોદર ભાઈ હતા, આથી મને આપની આવી દશા જોઈને ઘણું દુખ થાય છે . પ .
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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