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________________ ६७२ औपपातिसूत्रे कप्पं बुद्दीवं दीवं तिहि अच्छराणिवाएहिं तिसत्तखुत्तो अणुपरियहित्ता ण हव्वमागच्छेजा ॥ सू० ७५ ॥ मूलम् — सेणूणं भते । से केवलकप्पे जबुद्दीवे दीवे तेहि घाणपोग्गलेहि फुडे ? हता। फुडे ॥ सू० ७६ ॥ 3 लिकम् – सत्वरमित्यर्थ इति कृत्वा, 'केवलकप्प' काकल्प = सपूर्ण, 'जबुद्दीन' जम्बूद्वीप 'दीप' द्वाप 'तिहि' निभि 'अन्राणिराएहि ' अच्छगशन्दो गायोटिकानाच, छोटि काभिरित्यर्थ, 'तिसत्तखुत्तो' निसप्तवृत्व = एक विशतिवारान 'अणुपरियट्टित्ताण' अनुपर्यय्य= परिभ्रम्य खलु ‘हव्त्रमागच्छना ' श्रीमागच्छेत् । टोटिकायका समकाले एव सपूर्ण जम्बूद्वीपमेकविंशतिवारान् परिभ्रम्य शीप्रमागच्छेदित्यर्थ ॥ सू०७५ ॥ टीका- गौतम पृच्छति - ' से णून भते ।" इत्यादि । ' से णूण भते " अथ नून हे भदत ! ' से केवलकप्पे जबुद्दीवे दीवे ' स केवलकल्पे जम्बूद्वीप द्वीपे ' तेहिं 'तै, ' घाणपोग्गलेहिं ' घ्राणपुद्गलै = गधपुद्गलै ' फुढे ' स्पृष्ट किम् ' भगवा नाह - 'हता ! फुडे' हत | स्पृष्ट ॥ सू ७३ ॥ 1 उस समस्त जबूद्वीप की ( तिहिं अच्छराणिवाए हिं) तीन चुटकी बजाने मे जितना समय लगे उतने समय मे (तिसत्तखुत्तो) तीनगुणित सात - इक्कीस बार (अणुपरियहिता) प्रदक्षिणा देकर (हव्वमागच्छेज्जा ) वहा पर शीघ्र आजावे ॥ सू ७५ ॥ ' से णूण भते ।" इत्यादि । गौतम पूछते हैं - ( सेणूण भते । से केवलकप्पे जवुद्दीवे दीवे ) हे भदत ! वह समस्त जबूद्वीप ( तेहि घाणपोग्गलेहिं फुडे ? ) क्या उन समस्त सुगधित पुद्गलों से स्पृष्ट हो जाता है ? उत्तर-(हता ! फुडे) हा ' हो जाता है | सू ७६ ॥ धनी ( तिहिं अच्छराणिवाएहि ) त्र अपटी वाडवाभा भेटलो समय लागे तेटला सभयभा ( तिसत्तखुत्तो ) मेडवीसवार ( अणुपरियट्टित्ता ) प्रक्षिक्षा धने ( हव्वमागच्छेज्जा ) त्या पाछी भट्टी भावी लय ( सू ७५ ) ८ से गूण भते । छत्याहि गौतम पूछे छे (से णूण भते । से केवलकप्पे जबुद्दीवे दीवे ) लहन्त ! आा समस्त ४ यूद्वीप ( तेहिं घाणपोग्गलेहिं फुडे ) शु ते समस्त सुगधित थुङ्गसोथी स्पृष्ट यह भय छे ? उत्तर - ( हता । पुडे ) |, थर्ध लय छे ( सू ७६ )
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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