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________________ पीयूपर्यापणी-टीका र ७१ पंथलि समुद्घात विपये भगवद्गीतमयो सघाद ६६७ मूलम्-से नूणं भते । केवलकप्पे लोए तेहिं निजरापोग्गलेहि फुडे ' हता ! फुडे ॥ सू० ७१ ॥ मूलम्-छउमत्थे णं भते । मणुस्से तेसि णिज्जरापोगगलाण किचि वण्णेण वणं, गधेण गध, रसेणं रस, फासेण टीका-'से नूण भते ! इयाति । 'से नूण भते !' अथ नून हे भन्न्त । 'केवलकप्पे लोए' केपल कन्पो लोक , 'तेहिं' से 'निजरापोग्गलेहि' निर्जगपुदगलै - निर्जरा प्रमाना पुद्गला निर्जगपुद्गा-जीवेन अर्मतामापादिता कर्मपुद्गलास्तै 'फुडे' स्पृष्ट च्याप्त किम् ? इति प्रभ । उत्तरमाह 'हता । फुडे' हन्त । स्पृष्ट ॥ सू ७१ ॥ टीका-'उउमत्ये ण भते !' इत्यादि । 'उउमत्थे ण भते !' उमस्य सलु भन त !' है भन त ! उमस्य ग्गल मनुष्य , उद्धमन्य इह निरतिगयनानयुक्तो नेय , यतश्छद्मस्योऽपि विशिष्टानविज्ञानयुक्तो निर्जरापुद्गलान् जानात्येव। 'तेसि णिज्जरापोग्गलाण' तेपा निर्ज रापुद्गलाना 'किंचि' किञ्चिद् 'वण्णेण' वर्णेन-वर्णतया यथावस्थितस्वरूपग 'वण्ण' वर्ण= ‘से नूण भते !' इत्यादि। ( से नूण मंते !) हे भढत क्या अवस्यतया (तेहिं निजरापोग्गलेहिं) उनके निर्जराप्रपान पुद्गला द्वारा (केवलकप्पे लोए) यह समस्त लोग (फुडे) स्पृष्ट होता है । (हता ! फुढे) हाँ । स्पृष्ट होता है ॥ ॥ सू ७१ ॥ 'छउमत्येण' इत्यादि। (उउमत्थे ण भते । मणुस्से ) हे भदन्त । विशिष्टज्ञानी उमस्थ मनुष्य (तेसि णिज्जरापोग्गलाण ) उन निर्जराप्रधान पुद्गलों को (किंचि) किंचित् (वण्णेण वण्ण ' से नूण भते ।' त्या (से नृण भते । )लत ! शुभस्यतया (तेहिं निज्जरापोग्गलेहि भना निराप्रधान पुगो द्वारा (केपलकप्पे लोए) मा समस्त साउन (फुडे ) प थाय छ ? (हता! फुडे ) । थाय छ (सू ७१) 'उउमत्ये ण' त्या (उउमत्थे ण भते । मणुस्से) महत! विशिष्टज्ञानी अन्य मनुष्य (मि णिज्जरापोग्गलाण) ते निराधान पुगतान (किंचि) जियित् (वण्णेण वण्ण गण गध रसेण रस फासेण फास जाणइ पासइ) वर्ण था
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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