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________________ - - ६६० । औपणतिपत्रे क्खति, पञ्चक्खित्ता बहुइ भत्ताड अणसणाए छेदति, छेदित्ता जस्सट्टाए कीरड नग्गभावे जाव अत करति ॥म्०६६॥ मूलम्--जेसि पि य ण एगडयाण णो केवलवरनाणदसणे समुप्पज्जइ ते वहूड वासाड छउमत्थपरियाग पाउणति, 'पाउणति' पालयन्ति, 'पाउणित्ता' पालयित्मा, 'भत्त पच्चासति' भक्त प्रया रयाति, 'भत्त पञ्चमित्ता' भक्त प्रया' गाय 'महा' वहनि 'भत्ताइ अणसणाए' भक्तानि अनशनया 'छेदति' छिदति, 'दित्ता' किया 'जस्सद्वाए । यस्मै अर्थाय 'कीरह' क्रियते 'नग्गभावो' नग्नभान आफिचय क्रियते इत्यस्य , 'जाव अत' यावत्-सर्वदु खनामत 'करति' कुर्नति ।। सू० ६६ ॥ 'जेसि पि य ण' इत्यादि । 'जेसि पि य ण एगइयाण णो केवलवर नाणदसणे समुपज्जइ' येपामपि च सलु एकेपा नो केरलवरज्ञानदर्शन समुत्पद्यते(पाउणित्ता भत्त पञ्चक्सति) इस पर्याय को प्राप्त कर वे भक्त का प्रत्यास्यान कर देते हैं। (पञ्चग्वित्ता बहूद भत्ताद अणसणाए छेदति) प्रत्यारयान करके अनेक भक्तों का अनशन द्वारा छेदन कर देते है । (छेदित्ता जस्सहाए कीरइ नग्गभावे जाव अत करेंति) छेदन करके जिस प्रयोजन के लिये नग्नभाव उन्होंने धारण किया था वे उस प्रयो जन को प्राप्त करते है, अर्थात् समस्त दु सों का अत करते है । सू ६६ ॥ - 'जेसि पि य ण' इत्यादि। ___ (जेसि पि य ण) इन सावुआं मे से भी (एगइयाण) जिन किन्हीं साधु मुनिराजो को (णो केवलवरनाणदसणे समुप्पजड) निर्मल केल्जान एव केरल दर्शन का परसो सुनी ॥ पृथ्वीम ने पापन २ छ (पाउणित्ता भत्त पन्चरसति) २। पर्यायने प्रास उरीने सतत्यामान नी (पन्चक्सित्ता बहइ भत्ताइ अणसणाए छेति) प्रत्यावान गन मने महतोनु मनशन द्वारा जन २ (छेदित्ता जस्सदाछ कीरइ नगाभावे जार अत करेति) छन કરીને જે પ્રયોજન માટે નગ્નભાવ તેમણે ધારણ કરેલ હતું તે પ્રયોજનને પ્રાપ્ત કરે છે, અર્થાત્ સમસ્ત દુ ખેને અ ત કરે છે (સૂ દ૬) जेसि पि य ण' त्या नेसि पियण) मा साधुशाभाथी ५६५ (एगइयाण) ईमाधु मुनि सन (णो केवलवरनाणसणे समुप्पज्जइ) निम शान तमा १५ Podans भा अनि
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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