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________________ - पीयूषपिणो टोका ६४ अनासम्भादिमनु'य विषये भगवद्गीतमयो सबाद ६५७ पडिविरया, सब्बाओ आरंभसमारभाओ पडिविरया, सव्वाओं करणकारावणाओ पडिविरया, सव्वाओ पयणपयावणाओ पडिविरया, - सव्वाओ कोटण-पिट्टण-तज्जण-तालण-बह-बंधकिलेसाओ पडिविरया, सव्वाओ पहाण-मदण-वण्णग-विले. वण-सह-फरिस-रस-रूव-गंध-मल्ला-लकाराओ पडिविरया, भसमारभाओ पडिपिरया' सर्मस्मादारम्भसमारम्भात्प्रतिपिरता 'सबाओ करणकारावणाओ पडिपिरया' सर्वस्मा करगकारणात्प्रतिविरता , 'सव्वामओ पयणपयाणवाओ पडिविरया' सर्वस्मात्पचनपाचना-प्रतिपिरता , 'सयाओ कुरण-पिट्टण-तज्जणतालण-बह-वध-परिफिलेमाओ पडिग्रिया' सर्वस्माकुट्टन-पिन-तर्जन-ताडनवध-बध-परिक्लगात्प्रतिक्रिता , 'सचाओ हाण-महण-वण्णग-विलेवण-सदफरिस-रस-रूव-गर-मल्ला-रकाराओ पडिग्रिया' सर्वस्मात् स्नान-मर्दन-वर्णकनिलेपन-गन्द-स्पर्श-रस-रूप-ध-माल्याऽ-लकारात्प्रतिविरता, तया 'जे यावणे आरमममारभ से प्रतिविरत होते है, (सन्धाओ करणकारापणाभो पडिविरया) समस्त करण एव करावगसे-करन-कराने से विरक्त होत हे, (सव्याओ पयणापयावणाओ पडिविरया) सर्व प्रकार की पचा एन पाचन क्रिया से प्रतिपिरत होते है, (सव्वाओ कोहणपिट्टण-तज्जण-तालण-यह-ध-परिफिलेसाओपडिविरया) समस्त प्रकार के कुट्टण, पिट्टण, तर्जन ताटन, वय, वध, परिक्लेग से विरक्त होते है, (सन्यानो 'पहाण-मदणवण्णग-विलेषण-सह-फरिस-रस-रूब-गर-मल्ला-लकाराओ पडिविरया) सपूर्ण स्नान, मर्दन, वर्णक, पिलेपन, शद, रूप, गप, रस, स्पर्श, माल्य एव अलकारों से रहित २सयी प्रतिवित होय (सव्याओ करणकारावणाओ पडिविरया) समस्त ४२६५ तभा सी -४२१-७२रावाथी पिरत डाय (सयाओ पयणपया वणाओं पडिविरया) जारनी पन्थन तभ०४ पायन याथी वि डाय छ (सव्याओ कोट्टण-पिट्टण-तज्जण-तारण-बह-ध-परिकिलेसाओ पडिविरया) સમસ્ત પ્રકારના કુણ, પિટ્ટણ, તન, તાડન, વધ, બ ધ, પરિકલેશથી વિરકત હોય छ ( सन्याओ पहाण-मरण-चण्णग-विलेषण-सद-फरिस-रस-रूप-ध-मल्ला--- फाराओ पडिग्रिया) स पूर्ण स्नान, मन, प, विलेपन, २०, ५८, २स,
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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