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________________ - - - औपपातिक सील-व्यय-गुण-वेरमण-पञ्चखाण-पोसहो-बवासेहिं चउह. सहमुदिपुण्णमासिणीसु पडिपुण्ण पोसह सम्म अणुपालेत्ता 'अपगुयदुवारा ' अपावृतद्वारा गानार्थमयिरा उदघाटितदारा इयर्य, 'अवगुय' इनि देशीय शब्द, 'चियत्ततेउरपरप्परेसा' यता त पुरगहप्रया-रयत मीया प्रदत्त , मत पुरे वा गहे पा प्रवेशो येपा ते तथा, अनिधार्मिकतया सर्वानागाहनीया हयथे । ते फथभूता विहरती याह-'चउद्दस-द्वा-विद्व-पुण्णमासिणीसु' चतुर्दश्यम्युदिष्टापाणेमासी 'यहहि' बहुमि , 'सील-व्यय-गुण-रमण-पचरसाण-पोसहो-ववासहि' शील-प्रत-गुण-विरमण-प्रत्यार यान-पोषध-पवास -अस्य न्यायाऽनयोत्तगर्थे त्रिपष्टितम सूत्रेऽवलोकनीया । चतुर्दश्यष्टम्युनिष्टापौर्णमासीपु-इह-'उहिप्टा' इत्यनेन अमावास्या गृह्यते । मणि के समान निर्मल रहा करता है । (अपगुयदुगारा) इनक घर के दरयाजे सदा दान के लिये सुले रहा करते हैं, (चियस-तेउर-घर-पवेसा) राजा क अत पुर में भी इनका आने-जाने की कोई भी रोक-टोक नहीं होती है । (सहहिं सील-व्यय-गुण-वेरमणपचक्खरण-पोमहोववासेहिं चउदसटमुदिद्वपुण्णमामिणीमु) 'शील' गन्द से सामा यिक, देशावकाशिक, पोषध, अतिथिपविभाग ये चार लिये जाते है । 'प्रत' से पाच अणु बत, गुण से तीन गुणवत लिये जाते हैं। विरमण-मिथ्यात्व से निवृत्त होना, प्रत्यारयान--पवेदिनी में निषिद्धवस्तुका त्याग करना । पोषधोपचास--(पोप धत्ते) इस व्युत्पत्ति से धर्म की वृद्धि का जो करता है वह पोषध कहलाता है, अर्थात् चतुर्दशी, अमावास्या, अष्टमी, पूर्णिमा, ये पोषण कहलाते है, इन पर्वदिनो मे आहार, शरीरसत्कार, अमाचर्य, और सावधव्यापार इन चारों भलिना पा निभा रह्या ४२ छ, (अवगुयदुवारा) तमना घना ६२पात सहा हान भाटे उधास २४॥ ७२ छ (चियत्ततेउरघरप्पवेसा) रान! Rdપુરમા પણ તેમને આવવા-જવાની કોઈ પણ જાતની રોક-ટેક થતી નથી, (बहूहिं सील-वय-गुण-बेरमण-पच्चरसाण-पोसहोववासेहिं चउद्दसट्ठमुट्ठिपुण्ण मासिणीसु) la' शहथी सामायिक, शापाशित, योषध, यतिथिस कि ભાગ, એ ચાર સમજવાના છે “વતીથી પાચ આશુત, ગુણથી ત્રણ ગુણ વ્રત લેવાના છે, વિરમણ-મિથ્યાત્વથી નિવૃત્ત થવુ, પ્રત્યાખ્યાન-પર્વના દિવ सामा निषिद्ध स्तुना त्या स्वा पायपास-(पोप धत्ते) २ व्युत्पत्तिथा ધની વૃદ્ધિને જે કરે છે તે પિષધ કહેવાય છે, અર્થાત ચતુર્દશી, અમાં વાસ્યા, અષ્ટમી, પૂણિમા, એ પિલધ કહેવાય છેઆ દિવસોમા-પર્વ દિવસમાં આહાર, શરીરસત્કાર, અબ્રહ્મચર્ય અને સાવઘવ્યાપાર એ ચારેયને ત્યાગ
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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