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________________ पोयूपवपिणी-टोका र ५४ अम्नटपरियाजाविषये भगवद्गीतमयो संपाद ६२५ यासिज्जति, तमट्टमाराहित्ता चरिमेहि उस्सासणिस्सासेहिं सिज्झि हिति, बुझिहिति, मुञ्चिहिति, परिणिव्वाहिति, सयदुक्खाणमत __करेहिति ॥ सू० ५४॥ मूलम्-से जे इमे गामा-गर-जाव-सण्णिवेसेसु पव्वइया समणा भवति, त जहा-आयरियपडिणीया उवज्झायकृतकृत्यो भविष्यति, 'घुज्झिहिति' भोस्यते-समस्तानधान् केवलज्ञानेन ज्ञास्यनि, 'मुचिहिति' मोक्यते-सरलकमांग, 'परिणिवाहिति' परिनिवास्यतिकर्मकृतसन्तापाऽमावेन शानलीमविष्यति, 'सन्नदुक्खाणमत करेहिति' सर्वदु सानाम् यारीरमानसाना सरल दु खानामन्त करिष्यतीति ॥ सू० ५५ ॥ टीका-'से जे इमे' इत्यादि । "से जे इमे' अथ य इमे 'गामा-गरजाव-सण्णिवेसेम' प्रामाऽऽकर-यावत्-सन्निवेशेषु, 'पन्चइया समणा भवति' प्रजिता श्रमणा भवन्ति, ते कोया सन्ती यत्राऽऽह-'तजहा' तद्यथा-'आयरियपडिणीया' आचार्यप्रत्यनीका -आचार्यविरोधिन , 'उवज्झायपडिगीया' उपाध्यायप्रयनीका , अतिम उच्चासनि श्वासों से (सिज्झिहिति) कृतकृत्य हो जायेंगे, (युज्ञिहिति) समस्त चराचर पदार्थों को केवलनानरूपी आलोक-प्रकाग से जान जायेंगे, (मुचिहिति) समस्त कर्मागों से छूट जायेंगे, (परिणिवाहिति) कर्मकृत सन्ताप के अभाव से शीतलीभूत हो जायेंगे,(सन्बदुक्खाणमत करेहिति) समस्त शारीरिक, मानसिक दुखों का अन्त कर देगे ॥ सू ५५॥ 'से जे इमे' इत्यादि । (से जे इमे) वे जो (गामा-गर-जाव सन्निवेसेसु ) ग्राम, आफर से लेकर सन्निवेश तक के स्थानों में (पन्बडया समणा) प्रवजित साधु होते है, जैसे-(आयरियपडिणीया) आचार्य के प्रत्यनीक-विरोधी, (उवज्झायपडिणीया) उपाध्याय के निगेपी, (मुच्चिहिति) मभन्त उभाना माथी टी शे, (परिणिव्याहिति) मेथी थता सताना मलापथी शीतसीभूत , (सव्यदुस्साणमत करेहिति) સમસ્ત શારીરિક, માનસિક દુ ખેને અન્ત કરી દેશે (જૂ ૫૫) ‘से जे इमे' त्यादि (से जे इमे) तमा २ (गामा-गर-जाव-सन्निवेसेसु) म मा४२ साहिथी सधन भन्निवेश सुधानभ्यानामा (पवइया समणा) प्र. रित साधु डाय छे,413 (आयरियपटिणीया) माथायना प्रत्यना४-विरोधी,
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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