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________________ पीयूषषिणी टीका र ५१ अपडपरिव्राजकविपये भगवद्गीतमयो सवाद ६१९ जलरएण, एवामेव दढपइण्णेवि दारए कामेहि जाए भोगेहिं संवुड्ढे णोवलिप्पिहितिकामरएण,णोवलिप्पिहिति भोगरएणं, णोवलिप्पिहिति मित्तणाइणियगसयणसंवधिपरिजणेण ॥ सू० ५१ ॥ मूलम्-~-से ण तहारूवाण थेराणं अतिए केवलं रएण' नोपलिप्यते जलरजसा 'एपामेव दढपइण्णेवि दारए' एवमेव दढप्रतिज्ञोऽपि दारक , 'कामेहिं जाए भोगेहिं सवुड्ढे' कामैर्जातो भोगै मवृद्ध 'गोवलिप्पिहिति' नोपलेप्स्यते, 'कामरएण' कामरजसा-काम गदो रूप च, स एव रज कामरजस्तेन, 'गोवलिप्पिहिति' नोपलेप्स्यते 'भोगरएण' भोगरजसा-भोग गधो रस स्पर्शश्च, स एव रजो भोगरजस्तेन, 'गोवलिप्पिहिति मित्त-णाद-णियग-सयण-सरधि-परिजणेण' नोपलेप्स्यते मित्र-ज्ञाति-निजक स्वजन-सम्बधि परिजनेन-मित्राणि-मुहृद , ज्ञातय =सजातीया , निजका भ्रातुप्पुत्रादय , स्वजना =मातुलात्य , सम्बधिन =श्वशुरादय , परिजना -भृत्या दय , एतैर्न लिप्तो भविष्यति ॥ सू ५१ ॥ होते हैं, (एवामेव से दढपदण्णे वि दारए) इस तरह वह दृढप्रतिज कुमार भी (कामेहि) कामों से-काम सेवन से (जाए) उत्पन्न होगा, (भोगेहिं सवुड्ढे) भोगों से वृद्धिंगत होगा, तो भी वह (कामरएण) काम रजसे (णोवलिप्पिहिति) उपलिस नहीं होगा, (भोगरएण णोवलिप्पिहिति) भोगरज से उपलिप्त नहीं होगा। गध, रस, _स्पर्श इन गुणों का नाम भोग है। शब्द तथा रूप का नाम काम है। भोगरज एव कामरज इनमे रूपकाल कार है। (णोवलिप्पिहिति मित्त-णार-णियग-सयण-सवधिपरिजणेण) इसी तरह वह मित्र-मुहृद् , ज्ञाति-सजातीय, निजक-भतीजा आदि, स्वजन-मामा आदि, सबधी-श्वशुर आदि एव परिजन-भृत्य आदि परिकरों के साथ भी मोह को प्राप्त नहीं होगा॥ सू ५१॥ इण्णे वि दारए) तेवी। शत प्रतिज्ञ शुभार ५४४ (कामेह) अभाथी-म सेवनथी (जाए) उत्पन्न थरी, (भोगेहि सवुड्डे) लोगोथी वृद्धिगत यशे, तो पण ते (कामरएण) ४ाभ२०४थी (गोवलिप्पिहिति) पसित थशे नडि (भोगरएण णोवलिप्पिहिति) माथी उपसित थशे न थ, २स, २५श मे शुशानु નામ ભોગ છે શદ તથા રૂપનું નામ કામ છે ભેગરજ તેમજ કામરેજ सभा ३५3-24 २ छ (णोवलिप्पिहिति मित्त-णाइ-णियग-सयण-सबधि-परिजण) मावी शत त भित्र-सुहट, जाति-सन्नतीय, नि४४-भ्रातृपुत्र (भनिने) આદિ, સ્વજન-મામા આદિ, સબ ધી-શ્વશુર આદિ તેમજ પરિજન-નાકર આદિ પરિકરે-પરિવાર સાથે પણ મેહને પ્રાપ્ત કરશે નહિ (સૂ. ૫૧)
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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