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यूषयषिणी-टीया सु -६ अम्यडपरिमाजकविषये भगवद्गीतमयो मयाद ६११ जुद्ध ५७ वाजुद्ध ५८, लयाजुद्ध ५९, ईसत्थं ६० छरुप्पवायं ६१, धणुव्वेय ६२, हिरणपागं ६३, सुवण्णपाग ६४, सुत्तखेड ६५, यथा लता वृत्तमारोह तो आमूलमागिरो वृक्षमावेष्टयति, तथा यत्र योध प्रतियोपगरीर गाढ निपाट्य भूमौ पातयति तन्लतायुद्धम् ५९, 'सत्य' इपुगास्त्र नागवाणानिदिव्यास्त्रसूचक शावम्, 'सत्य' इति प्राप्तगैया इपुगास्त्रम् ६०, 'छुरप्पवाय' सुरप्रपातम्, सुर ='क्षुग' इति प्रसिद्ध छैदनगवपिगप , तस्य प्रपात =पातनम् ६१, 'धणुव्वेय' धनुर्वे =धनुगास्त्रम् ६२, 'हिरण्णपाग' हिरण्यपाक रजतसिद्धि ६३, 'मुवण्णपाग' सुवर्णपाफ कनकसिद्धिम् , 'मुवण्णपाग' इयत्र समवायागराजप्रश्नीयसूत्रोक्तयो 'मणिपागधातुपाग' इत्यनयो समावेश ६४, 'मुत्तखेड' पूरग्वेल-मूत्रक्रीडाम् ६५, 'वट्टखेड' वृत्तखेलम् ६६, एतन्काद्वय लोकतो गोव्यम्। 'वखेड' दयन 'चम्मखेड' चर्मखेलम्-टयम्य समपायागोतस्य समावेश । वृक्ष पर चढ कर नीचे से ऊपर तक वृक्ष को लपेट देती है उसी प्रकार योधा जिस युद्ध म प्रतियोगा के गरीर को अयन्त पाडित कर जमीन पर पटक देते हैं और उसके ऊपर चढ़ वेठने हैं वह लतायुद्ध हे उसकी, (६० ईसत्य) इपुशास्त्र की, 'सत्य' यहा पर प्राकृतारी से इपुगास्त्र समझना चाहिये । नागगण आदि दिव्य अस्त्र आदि का सूचक जो शास्त्र है उसका नाम इपुशास्त्र है उस की, (६१ छुरप्पवाय) छुरा से युद्ध करने की, (६२ वणुव्वेय) धनुर्वेद की, (६३ हिरण्णपाग) रजतसिद्धि की, (६४ सुवण्णपाग) सुवर्णसिद्धि का, राजप्रश्नाय एव समवायाग में कथित मगिपाक और धातुपाक का समावेश यहीं करना चाहिये । (६५ मुत्तखेड) सूत्र-डोरा से खेल्ने की, (६६वट्टखेड) वर्त-रस्सी पर खेलने का, यहाँ पर समवायाङ्गोक्त-(चम्मखेड) चमटा से खेलना-इसका भी समावेश प्रज्ञप्ति । अहिपान २८ (दिद्विजुद्ध) दृष्टियुद्धनौ भने 'राजप्रश्नीय' सूत्रमा मतावद (असिजुद्ध) तसारथी युद्ध ४२वाने समावेश थयेा छ ५५ (निजुद्ध) भयुद्धनी, 4. (जुद्धाइजुद्ध) म माहि प्रक्षेपपू [धा भाशन] महायुद्ध उपानी, ५७ (मुद्विजुद्ध) मुष्टियुद्ध ४२वानी, ५८ (बाहुजुद्ध) माथी युद्ध ७२वानी, ५- (ल्याजुद्ध) सतायुद्धनी, रेशते सता[A] वृक्ष ५२ न्यडीने नी येथी 6 सुधी વૃક્ષને લપેટી લે છે તેવી જ રીતે ચોધા જે યુદ્ધમાં સામેના પાના શરીરને ગાઢ ૩૫થી પીડા કરી જમીન ઉપર પાડી દે છે અને તેના ઉપર ચડી બેસે છે તે લતાયુદ્ધ छ, तेनी, १० (ईमत्य) धुशासनी, 'ईसय गाडी प्रात वीथी शान मम લેવું જોઈએ નાગબાણ આદિ દિવ્ય અન્ન આદિનુ સૂચક જે શાસ્ત્ર છે તેનું નામ घुसा तेनी, १(उपाय) छराथी युसानी, २ (धगुग्वेय) धनुनी, १३ (हिरण्णपाग) सिद्धिनी, ४ (सुवण्णपाग) सुप भिद्धिनी, 'राजप्रश्नीय'