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________________ ओपपातिकमा भवति अड्ढाइ दित्ताई वित्ताड वित्थिण्ण-विउल-भवण-सयणा-सण-जाण-वाहणाइ वहधण-जायस्व-रययाई आओ ग-पओग-सपउत्ताइ विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणाइ वहु-दासी'दित्ताइ' दीमानिउ वलानि-प्रशमितानि, 'पित्ताइ' चित्तानि पसिद्धानि 'वित्यिण्ण विउल-भवण-सयणा-सण-जाण-चाहणाइ ' पिस्तीर्ण-पिपुल-भवन-गायना-ऽऽसन यान-वाहनानि-विस्तीर्णानि=विस्तृतानि पिपुररानि=विशालानि भवनानि आयनानानि च येपु कुल्पु तानि तथा, 'बहुधण-जायरूप-रययाइ' बहुधन-जातरूप-रजतानि-बहनि धनानि जातरूपाणि सुवर्णानि रजतानि च येपु तानि तथा, 'वह दासी दास गो मोहसगवेलग-प्पभूयाइ ' बहु-दासी-लास-गो-महिप-गवेलक-प्रभूतानि बस्यो दास्य बवा दासा , गाव =वृपमा धेनवश्च, महिपा -महिपा मटिप्यश्च, गवेलका -मेषा तै प्रभूतानिसहितानि, 'आओग-पओग-सपउत्ताइ' आयोग-प्रयोग-सम्प्रयुक्तानि-विविधदानाssकुल हैं। जो कि (वित्यिण्ण-विउल-भरण-सयणा-सण-जाण-वाहणाद) विस्तृत एव विपुल भवनों के अधिपति है । जिनके पास अनेक प्रकार के शयन, आसन एव यानवाहनानिक है। (पहुधनजायरूपरययाद) जो बहुत अधिक धन के स्वामा हैं। सोने एव चादीकी जिनके पास कमी नहीं है। (आओग-पओग-सपउत्ताइ) आदान-प्रदान अर्थात् लाभ के लिये लेन-देन का काम करते है, (विच्छडिय-पउर-भत्त-पागाई ) याचक __ आदि जनों के लिये जो प्रचुरमात्रा मे भक्तपान आदि देते है, (बहु-दासी-दास-गो महिस-गवेलग-प्पभूयाद) जिनकी सेवामे रातदिन अनेक दासी एव दास उपस्थित रहा करते है, जिनका गोपालाए अनेक बैलोसे, गायों से, महषियों से, महिषों से, एव मेषों से, सदा भरपूर रहा करती है, (पहुजणस्स अपरिभूयाइ) और जो किसी के द्वारा भी पगभव वाहणाइ) 2 वि तेभर विधुन सपनाना अधिपति छ, भनी पास भने प्रा२न' शमन, सामन, तम०४ यान-पान मा छे, (बहु-धनजायरूव-रययाड) ने पहु०४ धनना पानी छ, सुपातमा यही भना पास माली नथी, (आओग-पओग-सपउत्ताइ) मान-अहान पर्थात् सामन भाटेवगनु दाभ उरे छ, (निच्छडिय-पउर-भत्त-पाणाइ) याय: माह बनान, भाटे २ प्रयु२ मात्रामा मत-पान माह मापे छ, (बहु-दासीदास-गो-महिस-वेलग-पभूयाइ) नीमेवामा तस्विस मने वासी દાસ ઉપસ્થિત રહ્યા કરે છે જેમની ગૌશાળાઓ અનેક બેલેથી, ગાયાથી लेसोथी, पासमाथी, तभन्न घेटाथी सह १२५२ २६॥ ४२ छ, (बहुजणस्स
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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