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________________ ५५० णण्णत्थ अलाउपाएण वा दारुपाएण वा महियापारण तेसिं णं परिव्वायगाणं णो कप्पड़ अयबंधणाणि जाव बहुगुण धारितए । तेसिं णं परिव्नायगाणं णो केप्पड़ णाणाविहवनराइं वत्थाई धारित, णण्णत्थ एगाए धाउरतीए । तेलिनं परि दारुपापण या महियापारण वा' नायमानानुपायाद वा दारुपात्राद्वा वृत्तिकापात्राश, 'न' इति पूर्वोक्को रिषेध-तुम्बीपात्रात् काष्ठीितिपानात् मृत्तिकापात्राद्वाऽन्यत्र । तुम्बी-काष्ठमृत्तिकापात्राणि तु मत्यासित कल्पते इति गाव. । ' तेसि ण परिवार को कपड़ अयवघणाणि बाजार पहुमुल्लाणि धारितए ' तेपा खलु परिवाजकानाम् = सौरभनयुक्तानि पात्राणि यावच्छन्दात् श्रपुतानादिवधनयुक्तानि पात्राणि, तथा,, बहु मूल्यानि अत्यान्यपि बाधनानि धारयितुः तेपा सन्यासिना न कल्पते । 'सेसि ण परिध्याय गाण णो कप्पर णाणावि चण्ण-राग रसाइ स्थाइ धारितए' तेषा खलु परिमाणकाना T अपने आहार-विहार आदि के लिये रखना फल्पित नहीं है । (गणस्थ अलाउपारण वा महियापारण ना.) तुमही, काउनिर्मित कमण्डलु, अथवा मिट्टीका पात्र, ये ही उन्हें रखना कल्पता है । (अयगंधणाणि जान बहुमुल्लाणि धारितए तेर्सि ण परिव्वायगाणं जो कप्पड़ ) तथा लौह के बंधन से युक्त पात्र, त्रपु के बधन से युक्त, पात्र, ताबे के बधन से युक्त पान, जसद के बधन से युक्त, पात्र, सीसे के बधा से युक्त, पात्र, 'चादी के बंधन से युक्त पात्र, सुवर्ण के बधन से युक्त पात्र तथा और भी बहुमूल्य बघन से युक्त पात्र इन साधुओं को फल्पित नहीं बतलाया गया है। (तेसिं ण परिव्वायगाण णो कप्पड़ जाणा हि-प्रण्ण-राग-रत्ताइ वत्थाई धारितर गण्णस्थ एगाए धाउरत्ताए ) अनेक प्रकार दारुपापण या महियापाएण पा) तूगडी, साठडानु जनेषु ४४ उज् अथवा भाटीनु पात्रो तेथे राभवु स्थित छे (अयबधणाणि जव बहुमुल्खाणि धारित तेसिं णं परिव्वायगाणं णो कप्पर) तथा बोढाना णधनथी युक्त पात्र, ત્રપુના ખાધનથી યુક્ત પાત્ર, તાબાના ખ ધનથી યુક્ત પાત્ર, જસતના બંધનથી યુક્ત પાત્ર, સૌસાના બંધનથી મુક્ત પાન, ચાદીના ખધનથી સુત પાત્ર, સુવણુના ખ ધનથી યુક્તપાત્ર તથા ખીજી પણ બહુમૂલ્ય (કીમતી) ધાતુના અમનથી सुत पात्र साधुमने भाटे स्थित तारेस नथी ( तेर्सि ण परिब्वायाण णो कप्पर प्राणामिह बन्जराग-रत्ताइ वत्थाइ धारितय, गण्णत्थ एगाए धाउरताप)
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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