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औपपातिक च तित्थाभिसेय च आघवेमाणा पण्णवेमाणा परूवेमाणा विहरति । जण अम्हं किंचि असुई भवइ त ण उदएण य महियाए य पखालिय सुई भवइ । एव खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवित्ता अभिसेयजलपूयप्पाणो अविग्घेण सग्ग गमिस्सामो ॥ सू० १७ ॥
तीर्थाभिपेकश्च, ' आघवेमाणा' आरयाप्त = कथयन्त, 'पण्णचेमाणा' प्रज्ञापयत = बोधयत, 'परूवेमाणा' प्ररूपयात = उपपत्तिभि स्वसिद्धान्त स्थापयतो विहरन्ति । ' ज णं अम्ह किंचि असुई भवइ ' यत् सच्चस्माक किञ्चिदशुचि भवति, ' त ण उदरण यमट्टिया य पक्खालिय सुई भवइ ' तत्सल उदकेन च मृत्तिकया च प्रक्षालित शुचि भवति = पवित्र भवति, 'एव खलु अम्हे' एव खलु वय, ' चोक्खा' चोक्षा =कृतप्रमार्जना – विमलदेहनेपथ्या, 'चोक्खायारा ' चोक्षाचारा = पवित्राचारा, अतएव 'सुई'
पुष्टि करते हुए (पण्णवेमाणा ) जनता को ये सब बाते अच्छी तरह समझाते हुए (परूवे माणा विहरति ) जनता मे इनकी युक्तिपूर्वक प्ररूपणा करते हुए विचरते रहते है । ( जण अम्ह किंचि असुई भाइ त ण उदएण य मट्टियाए य पक्खालिय सुई भवर) वे कहते है - कि जो कुछ भी हम लोगो की दृष्टि मे अपवित्र ज्ञात होता है वह पानी से या मिट्टी से जब प्रक्षालित हो जाता है तब वह शुचि हो जाता है। (एव खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवित्ता अभिसेयजलपूयप्पाणो अविग्वेण सम्ग मिस्सामी) इस प्रकार हम लोग चोखे है और हमारा आचारविचार भी चोखा - पवित्र है ।
नाभा पुष्टि (असार) ४२ता था, ( पण्णवेमाणा ) ४नताने या अधी पात सारी शेते समभवता था, (परूवेभाणा विहरति ) ४नतामा तेभनी युक्ति पूर्व अशा ४२ता था विसरता रहे है ( ज ण अम्ह किं चि असुई भवइ तण उदएण य मट्टियाए य पक्सालिय सुई भवइ) तेथे हे हे हे हे अर्ध પણ આપણી દૃષ્ટિમા અપવિત્ર જણાય છે તે પાણીથી અથવા - માટીથી જે घोवाभा भावे तो ते शुचि- पवित्र थर्ड लय छे (एव खलु अम्हे चोक्खा चोक्खा यारा सुई सुइसमयारा भवित्ता अभिसेयजलपूरप्पाणो अविग्घेण सम्म गमिस्सामो) આ પ્રકારે આપણે ચાકમા છીએ, અને આપણા આચારવિચાર પણ ચાકખા