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________________ ४५० औपपातिक परिग्गहे, ६ अत्थि कोहे, ७ माणे, ८ माया, ९ लोभे, अस्थि सर्वतोभावेन गृह्यते = मजरामर गान्दुिमैर्वेष्टयते आमा अननेनि, यद्वा परिगृयत सम् स्वानियत इति । 'अत्थि कोहे माणे माया लो' अस्ति कोध, अस्ति मान, अस्ति माया, अस्ति लोभ | कोन = कोधमोहनीयप्र युदयेन सपरचित्तप्रज्वलनरूपविकृति जनक आत्मन परिणामविशेष | मान = स्वापक्षयाऽय हीन मन्यते जनो येन म मनमोहन योदयसमुथोऽन्यहीनता मननलक्षग आमन परिणामनिशेष | माया मायामोहनीयोदयसमुधो जीवस्य वञ्चनपरिणतिविशेष - स्वपख्यामोहौ पादक्रमाचरणमिति यावत । लोभः - रोभ प्रकृत्युदयनगात् क्रव्याद्यभिलापक्षगो जीवस्य परिणतिनिशेष | 'अत्थि जात्र मिच्छादस जन्म, जरा एव मरगा दुसा से जिसके द्वारा आमा वष्टित होता है उसका नाम परिग्रह है । ( ममेद) भाव का नाम मूर्च्छा है । ( अस्थि कोहे माणे माया लोभे ) ये चार कपाय हैं-कोध, मान, माया और लोभ । को मोहनीय प्रकृति के उदय से स्व और पर की चित्तवृत्ति में प्रज्वलन रूप विकारजनक जो आमा का परिणामविशेष होता है, उसका नाम क्रोध है । मानमोहनीय के उदय से अन्य को हीन समझने का जो आत्मा का परिणामविशेष होता है वह मान हे । इसके सद्भाव में जीव अपनी अपेक्षा अप जन को हीन समझता है । मायामोहनाय के उदय से पर को बचित करने का जो आत्मा का परिणामविशेष होता है वह माया है । इसके वश में रहा हुआ जीव स्व और पर का व्यामोहक आचरण किया करता है। लोभप्रकृति के उदय के वश से द्रव्यादिक को चाहने की जो आत्मा का परिगतिविशेष है उसका नाम लोभ है । + (अत्थि मेहुणे) भैथुन याच छे (अत्थि परिग्गहे) परिग्रह य थाय छे, ने મૂર્છાપૂર્વક ગ્રહણ કરાય તેનુ નામ પરિગ્રહ છે, અર્થાત જન્મ જરા તેમજ મરણ આદિ દુખાથી આત્મા જેના દ્વારા વેષ્ટિત થઈ (વીટળાઈ) જાય છે तेनु नाम परियहछे भूर्च्छालावनु नाम पशु परिग्रह छे (ममेद) लावनु नाम भूर्च्छा छे (अत्थि कोहे माणे माया लोभे ) या यार उपाय छे-डोध, भान, માયા અને લેા ક્રોધમેાહનીય પ્રકૃતિના ઉદયથી સ્વ અને પરની ચિત્ત વૃત્તિમા પ્રજ્વલનરૂપ વિકારજનક જે આત્માનુ પરિણામ-વિશેષ હાય છે તેનુ નામ ક્રોધ છે માન-મેહનીયના ઉદયથી એક બીજાને હીન સમજવાનુ જે આત્માનુ પરિણામવિશેષ થાય છે તે માન છે આના સદ્ભાવમા જી પેાતાના કરતા બીજા માણુસને હીન સમજે છે. માયામાહનીયના ઉદ્મયથી મીજાની વચના કરવાનુ જે આત્માનુ પરિણામવિશેષ થાય છે તે માયા છે, તેને વશ થયેલેા જીવ સ્વ તથા પરંતુ વ્યામાહક આચરણ કર્યા કરે છે
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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