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________________ औपप्राविमने अभिणदिज्जमाणेअभिणंदिज्जमाणे, मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे विच्छिप्पमाणे, वयणमालासहस्सेहिं अभिथुधमाणे अभिथुव्वमाणे, कंति-दिव्य-सोहग्ग-गुणेहिं पत्थिन्जमाणे पत्थिज्जरीयाऽसकृत् सहस्राऽधिकजनत्यै स्तूयमान , 'मणोरहमागसहम्सेहि विच्छिप्पमाणे विच्छिप्पमाणे' मनोरथमालासहविस्पृत्यमान निरपृ-यमान व्हीनदीनरक्षणपूर्वक सकलमनोरथपूरफत्वात् जनाना मनोरथमालासहनैर्मुहर्मुहु स्पृश्यमान -'नृपोऽयमस्माकमापदुद्वारक पालकश्च, अतोऽय शत वर्षाणि जीवतु' दयादि मनोरथसहस्रविषयीभवन् । इत्यर्थ । 'वयणमालासहस्सेहिं वचनमालासहौ -मञ्जुलोदारवचनरचनानिच्य , 'अभिथुन्नमाणे अभियुबमाणे ' अभिष्ट्रयमान अभिष्ट्रयमान , 'कंति-दिल्ब सोह ग्ग-गुणेहिं पत्थिजमाणे पत्थिज्जमाणे ' फातितिव्यसौभाग्यगुणै प्रार्यमान प्रार्थ्य मान , कात्या=देहदी त्या, प्रशस्तसौभाग्यादिगुणैश्च हतुना जनै सातिशयम् अभिलष्यमाण अभिलष्यमाण , 'वहण नरनारीसहरसाण दाहिणहत्येण अनलिमालासहस्साइ बार सहस्राधिक जनों द्वारा हार्दिक भावना से स्तुत होते हुए, (मणोरहमालासहस्सेहि विच्छिप्पमाणे विच्छिप्पमाणे) हजारों जनों के मनोरथ सहस्ररूपी मालाओं द्वारा स्पृष्ट होते हुए, अर्थात्-हीनदीन जनों के रक्षापूर्वक समस्त मनोरथों का पूरक होने से ये राजा हम लोगों की आपत्ति से रक्षा करने वाले है, एव पालक हैं, इसलिये ये सौ वर्ष तक जीवित रहें" इस प्रकार से जनों के हजारों मनोरथ का पात्र होते हुए (वयणमालासहस्सेहि अ मिथुन्चमाणे अभिथुबमाणे) मजुल एव उदार वचनों की रचनाओं द्वारा अभिष्टुत होते हुए, (कति-दिन्ब-सोग्ग-गुणेहि पत्थिज्जमाणे पत्थिन्जमाणे) देह की दीप्ति-से एव दिव्य-असाधारण सोभाग्यादिक गुणों से जनों द्वारा प्रार्थित होते हुए, (बहूण नरनारिपूर्व स्तुति शता, (मणोरहमालासहरसेहिं निन्छिप्पमाणे विच्छिापमाणे) गरे। લેકના હજારો મરથરૂપી માલાઓ દ્વારા સ્પર્શીતા, અર્થાત્ હીનદીનજનેની રક્ષાપૂર્વક સમસ્ત મને પરિપૂર્ણ કરતા હોવાથી આ રાજા અમારી આપત્તિથી રક્ષા કરવાવાળા છે તેમજ પાલન છે, તેથી તેઓ સો વર્ષ સુધી पता २७-या प्रधान बोडोना जरी भनारथाने पात्र यता, ,(वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे अभिथुव्वमाणे) भन्नुस तेमा हार परनानी श्यना द्वारा मलिष्टुत यता, (कति दिव्य सोहाग गुणेहिं पत्थिज्जमाणे पत्थिजमाणे) ની દીપ્તિથી તેમજ દિવ્ય-અસાધારણ સૌભાગ્ય આદિક ગુણોથી લોકો દ્વારા प्रार्थित यता, (बहूण नरनारिसहस्साण अजलिमालासहस्साइड
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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