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________________ રૂ૮૮ औषपातिकको चंपाणयरी सब्भितरवाहिरिया आसित्त जाव गंधवहिभूया कया, त णिज्जतु ण देवाणुप्पिया। समण भगवं महावीर अभिवंदिउ ॥ सू० ४७॥ मूलम्-तए ण से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बल_ 'चपाणयरी सभितरवाहिरिया' चम्पा नगरी साऽभ्यन्तग्बाद्या 'आसित्त जाव गरवटि भूया कया' आमित यावद गधरतिभूता कता, 'त णिनत ण देवाणुपिया' तन्निर्यातु सलु देवानुप्रिया ! 'ममण भगा महावीर अभिवदिउ' भगवत महापारमभिवन्दितुम् ॥ सू० ४७ ॥ टीका-'तए ण' यानि । 'तए ण' तत =सेनापतिनिवेदनानन्तर म्बलु __ 'से ऋणिए राया भभसारपुत्ते ' स कृणिको गजा भभसारपुर 'पलबाउयस्स अतिए' बलल्यापृतस्याऽतिके वलव्यापृतमुग्यात 'एयम' एतमर्थ-'भरतानानुसारण सर्व सम्पाहै। (चपा णयरी सभितरवाहिरिया आसित्त जार गधवटिभूया कया) तथा चपानगरा भा भीतर बाहिर से अच्छी तरह झडवाकर साफ करा दी गई है। उसमे जल भा छिडकना दिया गया है, यानत् रह सुगधित द्रव्य जैसा बन चुका है, (त देवाणुप्पिया) अत है देवानुप्रिय ' (समण भगव महावीर अभिवदिउ णिज्जतु ) अब आप अमण भगवान महावीर को पटना करने के लिये पधारे || मू० ४७ ॥ 'तए ण मे ऋणिए राया भभसारपुत्ते' दत्यादि। (तए ण) इसके बाद (भभसारपुत्ते से ऋणिए राया) भभसार अथात् श्रेणिक के पुत्र कृणिक राजा (पल्याउयस्स) सेनापति के मुस से ( एयमट्ट सोचा) हाथा आदि का તથા ચ પાનગરી પણ આ દર-બહારથી સારી રીતે વાળીઝૂડી સાફ કરાવી દીધી છે. તેમાં પાણી પણ છ ટાગ્યું છે જેથી તે સુગ ધિત દ્રવ્ય જેવી બની ७ (त देनाणुपिया) भाट वानुप्रिय । (समण भगव महावीर अभिवदिउ णिज्जत) हवे मा५ श्रभा मावान महावीरने बना ७२॥ सा३ पधारे। (सू ४७) 'तए ण से कृणिए राया भमसारपुत्ते' त्यहि (तए ण) त्यार पछी (भभसारपुत्ते से कृणिए र या) लालसार अर्थात् प्रेलिना पुत्र एि PM (बल्याउयस्स) सेनापतिना भुमथा [एयमदु सोन्चा] साथी
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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