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________________ - ३४६ औपपातिषरे गोरा सेयासुभ-वण्ण-गंध-फासा उत्तमवेउब्बिया विविह-वत्थ-गंधमल्ल-धारी महिड्ढिया महज्जुइया जाव पंजलिउडा पज्जुवासंति ॥ सू०३७॥ पद्म पश्म गौरा -पाकिझकवद् गौरवर्णा ! 'सेया' भ्यता शुभकाति गालिन । 'सुभ वण्ण गध फासा' शुभ-वर्ण गध-स्पा । 'उत्तम-वेविणो' उत्तम विकुविंग = उत्तमनिपुर्वणाकारिण 'विविद-वत्य-गध मल्ल धारी' निविध-बन-गन्य-मान्य धारिण 'महिड्डिया' महद्धिका -महासम्पत्तिशालिन । 'महन्जुइया' गहायुतिका -अतिशय धुतिमत । 'जाव पजलिउडा पज्जुवासति' यारप्राअलिपुटा पर्युपासते-यावच्छन्दात् -पूर्ववत् विकृव , आदक्षिणप्रदक्षिण-चन्दन-नमनादय सुध्यते, प्राञ्जलिपुटा =नद्धाऽञ्जलय पर्युपासते समतादुपासना कुर्वते ।। सू०३७ ॥ मस्तक की केशपक्ति मुकुट की काति से दीप्त हो रही थी। (रत्तामा) इनकी काति अरुण-लाल थी, (पउम-पम्ह-गोरा) पर इनका शरीर कमल के केशरा के समान गौरवर्णवाला था। इसलिये (सेया) ये शुभ्रक्राति से शोभित थे। (सुभ-गध-वण्णफासा) इनके शरीर के गध, वर्ण और स्पर्श शुभ थे। (उत्तमवेउविणो) ये उत्तम वैक्रिय शरीर करनेवाले थे। (विविह-वत्थ-गध-मल्ल-धारी) अनेक प्रकार के उत्तमोत्तम वस्त्रों को ये धारण किये हुए थे। गले मे इनके सुगधित पुष्पों की माला सुशोभित हो रही थी। तथा ये (महिड्ढिया) महद्धिक थे। एव (महज्जुइया) महायुतिधारी थे। (जाव पनलिउडा पज्जुवासति) ये पूर्ववर्णित असुरकुमारों की तरह तीन बार अजलिपूर्वक सविधि वन्दना कर प्रभु की सेवा करने लगे। सू० ३७॥ भ3 प्रशित थ २६ ता (मउड-दित्त-सिरया) भरतनी, And भुटनी तिथी हीपी ती हुती (रत्ताभा) तभनी तिम-सास हुती (पउम-पम्ह-गोरा) पतिभना शरीर उभसनाशरी २१ गौर नाता साथी (सेया) तेरा शुनातिथी शोलता उता (सुभ-गध-घण्ण-फासा),अमना शरीरना अन्य, वर्ष भने स्पश शुल हुतार (उत्तमवेविणो) ते उत्तम वैठिय-शरीर धा२६५ १२वावापाडता (विविह-वत्य-ध-मल्ल-धारी) भने પ્રકારના ઉત્તમોત્તમ વચ્ચે તેમણે ધારણ કર્યા હતા, તેમના ગળામાં સુગંધિત पुष्पानी भाणा शाली २७ ती तथा तेमा (महिड्ढिया) भद्वि उता शेव (महज्जुइया) मडाधुतिधारी ईता (जाव पजलिउडा पज्जुवासति), ती આદિઠ ૧૦ વિમાન હોય છે મૃગ મહિષ, આદિના અનુક્રમે તેઓના મુકુ ટમા ચિહ્નો હોય છે
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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