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________________ पीयूषपिणो टीका व ३७ वैमानिकदेवघर्णनम् धारी कुडल-उज्जोविया - णणा मउड - दित्त - सिरया रत्ताभा पउम-पम्हनि येषा ते तथा । तत्र ऋषभो वृषभ, मृगमहिपादिचिह्नयुक्तमुकुटमहिता 'पसिडिलवर मउड तिरीड धारी' प्रशिथिल वरकापिन्यास किगटधारिण, प्रशिथिला ये ' वरमउड' वरकेशविन्यामा - प्रशस्त केशविन्यासा किरीटाथ तान् धरन्ति ये ते तथा, 'मउड' इति केशविन्यासार्थका देशाशन्द ।' कुडल - उज्नोविया गणा ' कुण्डलले योनिता नना - कुण्डन उद्दयोतित = प्रकाशितम् आनन = मुग येषा ते तथा कुण्डलोद्भासितमुग्वा इयर्थ | 'मउड- दित्त - सिरया' मुकुट-दीप-गिराजा मुकुटन रन खचितेन दामा गिराजा केशा येषा ते तथा, 'रत्ताभा' रक्ताऽऽभा = अरुगकान्तिमन्त | 'पउम पम्ह-गोरा' हय= घोडा, गजपनि-गजेन्द्र, भुजग-सर्प, सङ्ग और वृषभ इनके चिह्न थे । ( पसिडिलवर - मउड - तिरीड - पारी) प्रशिथिल उत्तम मउड - केशनियास एवं किरीट-मुकुट को ये धारण किये हुए थे, अर्थात् भगवान् के दर्शन करते की लरा म इनके प्रशस्त काविन्यास और मुकुट शिथिल हो गये थे । ( कुडल - उज्जोविया - गणा ) कुडलों की विष्टि आभा से इनका मुग्वमण्डल प्रकाशित हो रहा था । ( मउड - दित्त - सिरया ) ३४५ = (१) ये चिह्न १० ह, देवलोक १२ है । पर इनके इन्द्र १० ह-(१) सौधर्मा इन्द्र, (२) ईशानका इन्द्र, (३) सन कुमारका इन्द्र, (४) माहेन्द्र का इन्द्र, (५) नालोक का इन्द्र, (६) लान्तकका इन्द्र, (७) महाशुकका इन्द्र, (८) सहस्रारका इन्द्र, (९) आनत एव प्राणतका इन्द्र और (१०) आरण एव अच्युत देवलोकका इन्द्र, इस प्रकार ये १० इन्द्र टन १२ कल्पों के है । इन इन्द्रो क ये कमग पालकादिक १० विमान होते है । मृग महिप आि म १० चिह्न मुकुटों में इनके होते है । पति [हाथी], लुग-भर्थ, भडुग भने वृषल [जजह], सेना शिक्ष' हुता (पसिढिल - वर - मउड - तिरोड - धारी) प्रशिथिल उत्तम भउ - डेशविन्यास शेव કિરીટ-ફુટ તેમણે ધારણ કર્યા હતા અર્થાત્ ભગવાનના દર્શન કરવાની ઉતાવળમા તેમના પ્રશસ્ત કેશ-વિન્યાસ અને મુકુટ શિથિલ થઇ ગયા હતા (कुडल-उज्जोनिया-गणा) उद्योनी विशिष्ट आला (अअश) थी तेभना भुभ (१) मा चिह्न १० छे, हेव १२ छे, पशु तेना द्र १० ३ (१) सौधर्मना धद्र, (२) ईशाननो द्र, (3) सनत्कुमारनो द्र, (४) माहेन्द्रनो छद्र, (4) ब्रह्मदोनो धद्र, (६) सानो छद्र, (७) महाशुन्नो ऽद्र, (८) सहसारना ४द्र, (८) मानत भेव प्रायतन। ४६, तथा (१०) भारगु शेव अभ्युत देवयान ઈંદ્ર આ પ્રકારે આ ૧૦ ઇંદ્ર આ ૧૫ાના છે આ ઈંટ્ટોના ક્રમથી પાલડ
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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