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taff टीका सू ३१ महावीरस्थामि शिष्यवर्णनम
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ara fariyar तत्थ तत्थ तर्हि तर्हि देसे देसे गच्छागच्छ गुम्मागुम्मि फड्डाफड्डि अप्पेगडया वायति, अप्पेगइया पडि -
हुका आमन् तेषु गिप्येषु 'अप्पेगडया ' अप्येकके= केचित् -' आयारधरा जाव विवागनुयधरा' आचारधरा याद निपातारा - आचाराङ्गादि-निपाकात - सर्वश्रुतधारिंग, इमे पूरं वर्णिता, 'तत्य तत्य तर्हि तर्हि देसे देसे ' तन तन तस्मिन् तस्मिन देशे देगे -अत्र वीप्सया स्थान वाहुल्य कथना साधूनामधिकता अप्रतिनधरिचरण च मूचितम, तथा बहवो बहुविधप्रामनगरवनादिषु गता इति च गम्यते । ' गच्छागच्छ ' गागरिकाचार्य परिवारो गच्छ गच्छेन गच्छेन विभय वाचनादिक प्रवृत्तम्, इति पिंग्रह ' तत्र तेनेदमिति सरूपे' इत्यनेन गच्छागच्छ इत्यस्य साधुजम् । एव 'गुम्मागुमि गुल्मागुल्मि-गुल्म= गकभाग, गुल्मेन गुल्मेन विभय इद वाचनादिक प्रत्तमिति गुल्मागुल्मि । 'फड्डाफट्टि ' फड्डकाफड्डी-फड्क= लघुतगे गच्चैकभाग, पडकेन फडकेन विभायेद वाचनादिक प्रवृत्तम्, हत्यर्थे फडकाफडकि- एप प्रयोगषु समासे कृते पूर्वपदस्य दीर्घ समासान्त इच्-प्रत्ययथ । 'अप्पेगइया वायति' अप्येकके
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से अनगार भगवत थे, उनमें (अध्येगइया) कितनेक (आयारधरा जाव विभागसुधरा ) आचारागमून के धारक थे, 'यावत्' शब्द से कितनेक सूत्रकृताङ्ग से लेकर प्रश्नव्याकरण पर्यन्त सूनो म से एक २ सुन के धारक थे और कितनेक विषाकश्रुत के धारक थे, उपलक्षणसे कितने सबके भा धारक थे। (तस्थ तस्य तर्हि तर्हि देसे देसे) वे उमी बगीचे में भिन्न २ जगह पर (गच्छागच्छ गच्छ गच्छरूप में विभक्त होकर, (गुम्मागुम्मि) गच्छ क एक २ भाग में विभक्त होकर (फट्टाफडि) फुटकर फुटकर रूप में विभक्त होकर निराजते थे । इनमें से (अप्पेगइया वायति ) कितनेक सून की वाचना प्रदान करते थे-सून पढाते अनगार लगव तो हुता, तेमनाभा (अप्पेगइया) डेटसाठ (आयारधरा जान निवाग सुयधरा ) आशाराम सूत्रना धार४ हता, 'यावत' गव्हथी डेटलाई सतागथी લઈને પ્રરનવ્યાકરણ સુધીના સૂત્રોમાથી એક એક સૂત્રના ધારક હતા, અને કેટલા पिपासूनना धारठ खेता, उपसक्षत्रुथी हेटसाठ मघा सूत्राना धाग्४ ३ता (तत्य तत्थ तर्हि तर्हि देसेरसे) तेन मशीन्यामा बुद्दी लुद्दी या (गच्छागच्छ गच्छ उपभावित अर्धने, (गुम्मागुमि) गरछना थे मे४ लागभा विलात थाने ( फड्डाफड्डि ) टाल्टवाया इसमा विल थर्धने विशता हता तेभनाभाथी ( अपेगइया वायति ) डेटा सूत्रनी वायना आयता उता सूत्र लावता